पठनीय पुस्तक : कालिका दर्शन
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“रतिया दिनवा उहे सोचे,
वोटवा कहां-कहां से पाई ।
परदेश से लोगन के बुलाई,
रुपया पैसा खूब लुटाई ।।”
कितना सूक्ष्म अवलोकन किया है कवि ने चुनावी परम्परा का । डाॅ. सिकन्दर लाल जी का आलेख ‘धर्म का यथार्थ रूप’ एक प्रगतिशील आलेख है । सुनिता साईंनाथ की कविता “धड़कन” भी अच्छी कविता है, यह कविता एक प्रेम कविता है । कवियित्री इस कविता के माध्यम से अपने प्रेमी (नायक ) को अपने पास बुला रही है, उसे धड़कन कह अपनी धड़कन का हाल सुना रही है । कवियित्री का यह प्रयास अच्छा है, बस जरूरत है सलीके से शब्द सजाने की । डाॅ. सत्यनारायण चौधरी जी की रचना भी मुझे अच्छी लगी। नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर की कविता ‘भक्तों की सरकार मां के दरबार’ भी रोचकता लिए हुए है। अवधेश कुमार निषाद ‘मझवार’ की कविता ‘बेटी हम शर्मिंदा हैं’ बहुत मार्मिक सृजन है। यह कविता पाठक को भीतर तक झकझोरती है । देखिए कविता की एक-दो पंक्तियां-
‘नहीं शर्म आती दरिंदों को
ना देंखे उम्र ना देंखे मासूमियत
इनको तो अपने मतलब से मतलब
क्या इनके घर में नहीं है बेटी ।’
‘जिस बच्ची पर जुल्म हुआ
वो कितनी रोयी होगी
मेरा कलेजा फट जाता है
तो उसकी मां कैसे सोयी होगी।’
यह पूरी कविता भावविह्वल करती है, साथ ही साथ आक्रोशित भी करती है ।
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा के दो मुक्तक शामिल हैं और दोनों मुक्तक योग पर केंद्रित हैं, जो बेहतरीन हैं । विजय कुमारी सहगल की कविता ‘युवा’ अच्छी कविता है । .डाॅ मिथिलेश कुमार मझवार जी की कविता ‘मगर क्या करें’ एक रोचक कविता है। इस पुस्तक में मेरी भी एक कविता “जरा सोचना” संग्रहित है ।
निष्कर्ष के तौर पर यह बात जरूर कहूंगा कि यह संग्रह पठनीय है, संग्रहणीय है। संपादक ने पूर्ण मनोयोग से पुस्तक का संपादन किया है । मैं ‘देहाती साहित्यिक परिषद्’ की ओर से प्रकाशक व संपादक दोनों को अशेष बधाई देता हूँ… जय साहित्य !
— अतुल मल्लिक “अनजान”
पुस्तक का नाम – कालिका दर्शन,
संपादक – मुकेश कुमार ऋषि वर्मा,
प्रकाशक- बृजलोक साहित्य कला संस्कृति अकादमी- ग्राम रिहावली, डाकघर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश 283111
समीक्षक – अतुल मल्लिक ‘अनजान’
संस्थापक संयोजक- देहाती साहित्यिक परिषद् , पूर्णिया, (बिहार)