यात्रा वृत्तान्त

मेरी जापान यात्रा – 9

हिरोशिमा से हम कोबे गए। पर जाते ही होटल अपने पश्चिमी तरीके का बदल लिया।  कारण जापान में अभी भी देसी खुड्डी का रिवाज़ है।  पब्लिक टॉयलेट भी दोनों   तरह के बनाये गए हैं।  मगर उनकी सफाई बहुत थी। और हर जगह एक छोटा ,बच्चों के मतलब का टॉयलेट भी बना हुआ था।  चाहे वह देसी हो या विलायती।
          एक दिन का ही हमारा समय था।  होटल की स्वागत कर्ता ने कहा की छोटा सा शहर है।  हमारी सिटी टूर की सरकार बस ले लो वह फ्री है।  अतः हम बड़े खुश।  मगर यह तो पता ही नहीं था की क्या क्या देखना है।  खैर अटकल पच्चू निर्णय लेते रहे।  महाजनो येन गतः ,सा पन्थ: .जहां अधिक लोग उतारते वहीँ हम भी उतरकर पीछे पीछे चल पड़ते।  सुन्दर बाग़ बगीचे देखे।  म्यूजियम दो थे। एक १९९५ के भूकंप का जिसमे सारा कोबे नगर धराशायी हो गया था।  दूसरा वही ऐतिहासिक।  दोनों में दिलचस्पी नहीं थी।  सारा कोबे शहर इतना सुन्दर बना दिया गया है की लगता नहीं कि यहां हजारों लोग तबाह हो गए थे।  शहर फिर भी खुशनुमा था।  चीन टाउन देखा और वहीँ खाना खाया मगर वह खाना इंग्लैंड के चीनी  खाने से कहीं अधिक मसालेदार और स्वादिष्ट था।  पर हमने तो सिर्फ नूडल और सब्जियां खाईं थीं।  उसने ख़ास मक्खन से सब बनाया था।  समय काफी खर्च हो गया था।
           कोबे का बाज़ार और हारबर बहुत आधुनिक है।  डमरू के आकार की एक बहुत ऊंची मीनार बनाई  है एफेल टावर की तरह। इसकी ऊँचाई ३०० मीटर है। इसको कोबे पोर्ट टावर कहा जाता है।
            घूमते घूमते हम ने एक टैक्सी वाले से कहा कि हमें एक मंदिर देखना है। उसने केवल हमें निर्देश दे दिए और चलता बना। अतः हम भी चल पड़े। केवल दस मिनट के बाद हमें यह जगह मिल गयी। यह जापान का संभवतः सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे  इकुता देवालयकहा जाता है। यह   ‘ एबसु ‘  नाम के देवता का स्थान   है।  इसको तीसरी शताब्दी में एक महारानी जिसका नाम ‘ जिंगू ‘ था ,ने बनवाया था।  शिंटो धर्म के इस देवता को सुख ,समृद्धि और सौभाग्य के सात देवताओं में  प्रथम माना जाता है।   यह   मछलीमारों का देवता है और इसकी प्रतिमा एक खुशहाल मछुआरे के स्वरूप में बनाई जाती है।  अक्सर लोग इस प्रतिमा को अपने घर में भी रखते हैं।  मेरे ससुर जी भी ऐसी   प्रतिमा चीनी मिटटी की बनी हुई कोबे से लाये थे। कोबे व्यापारियों का शहर रहा है क्योंकि यह बंदरगाह है।  इस मंदिर के अंदर बाहर घूम कर जब हम बाहर आये तो एक     नवदम्पत्ति शादी करवाकर अपनी फोटो खिंचवा रहे थे।  हमारी उत्सुकता  देखकर उन  दोनों ने   हमे झुककर अभिवादन किया जिसका उत्तर हमने भी दिया। दुल्हन ने  अपने चहरे पर सफ़ेद रंग से पुताई की हुई थी। दूल्हे की वेश भूषा जापान की पारम्परिक वेशभूषा थी पंत के सामने एक लम्बा सा लुंगी के जैसा एप्रन था।  दुल्हन ने कीमोनो पहना हुआ था।  हमने उनके संग फोटो खिंचवाई।
  उसके बाद हम अंतिम स्टॉप पर उतर गए जहां  समुद्र पर विश्व का सबसे लंबा पुल बना हुआ है। इसका नाम है ‘ अकाशी कायकोयो ब्रिज ‘ |  इसके शुरू में और अंत में एक टावर है जिसपर लिफ्ट से जाते हैं टिकट लेकर।  टावर घूम रही थी।  बहुत ऊंची भी है।  समुद्र में ३९ ११ मीटर यानि दो /ढाई  मील लंबा यह बेहद खूबसूरत पुल दुनिया के प्रसिद्ध  पुलों में से एक है।  यह एक द्वीप को मुख्य शहर से जोड़ता है।.कोबे एक ऐतिहासिक महत्व का शहर है और जापान का प्रमुख बंदरगाह भी रहा है सदियों से । इसीलिए यहां विविध देशों के लोग भी रहतेआये   हैं।   और अंग्रेजों की बनाई एक खास कौलोनी भी है जहां अब सबसे फैशनेबुल शौपिंग बुटीक आदि बन गये हैं ।
            चेरी के पेड़ों पर  हलकी  सी बहार शुरू हो गयी है।  कोबे पैलेस बहुत सुन्दर जगह है मगर कुछ दूर थी अतः हमने इरादा छोड़ दिया।  शाम को वापिस शहर में घूमते रहे । चीन टाउन में ड्रैगन डांस हो रहा था। चीनी   नया साल अभी कुछ दिन पहले ही  था।यहां नानकीन पार्क है जिसमे चीनी नए साल की बारह राशियां /जन्म चिन्ह / यानि बारह पशुओं की मूर्तियां बनी हैं।    शाम को भोजन पिज़्ज़ा हट  में किया जो हमारे होटल के पास ही था।  मन तो हो रहा था कि  किसी जापानी होटल में खाना खाएं मगर  मछली के तेल में पका खाना हम खा नहीं पाते अतः दूर से हाथ जोड़ दिए।
         अगले दिन बहुत सुबह की ट्रेन थी इसलिए नौ बजे तक घर आ गए  । सुबह की तैयारी की।  ओसाका जाना था।

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल kadamehra@gmail.com