/ आसान नहीं हैं दुनिया में चलना /
मनुष्य को चलाती है भूख और
उससे बढ़कर चलाती है प्यास
अपने अनुभव के बल पर
बहुत कुछ सीखता है वह
भूख मिटाने और प्यास बुझाने के
कभी जाने, कभी अनजाने के दौर में,
अतृप्त, दमित इच्छाओं की पूर्ति
पूरी नहीं होती है दुनिया में सबकी
हर इच्छा को पूरी कर पाना तृप्ति
वश की बात नहीं है किसीकी
नियमों को तोड़़कर चलनेवाले
अपनी इच्छाओं पर दौड़नेवाले
कुछ पाते हैं तो कुछ खोते हैं
शाश्वत नहीं है कोई भी सत्य
सौ गुणी आदमी यहाँ असत्य
हरेक की अपनी कमियाँ रहीं
देखनेवालों की दृष्टि में गलत या सही
पछताते हैं एक न एक दिन जरूर
कुछ पाने से और कुछ खोने से
हर चीज़ खरीदारी नहीं होती है
इच्छाओं के जाल को तोड़कर
आसान नहीं है दुनिया में चलना।
पैड़ाला रवीन्द्र नाथ।