कविता

तू मुस्कुराना सीख ले

क्रिसमस दिवस हो या नववर्ष दिवस,
ग़म की वेला हो या खुशियों का मेला,
आम दिवस हो या फिर हो शुभ जन्मदिवस,
सारा जहां है तेरा, तू मुस्कुराना सीख ले.
कोई जगत के बजाय मंगल पर जीवन ढूंढता है,
कोई जीवन में ही मंगल का मंज़र ढूंढता है,
तू अपने जीवन को ही मंगलमय समझ ले,
सारा जहां है तेरा, तू मुस्कुराना सीख ले.
कोई ठंड में ठंड की शिकायत करता है,
कोई गर्मी में गर्मी से बेहद डरता है,
दोनों को मौसम का मेवा समझ ले,
सारा जहां है तेरा, तू मुस्कुराना सीख ले.
हर गली में मंदिर-मस्जिद-चर्च-गुरुद्वारे हैं,
प्रभु को सर्वत्र हाज़िर समझ सिर झुकाना सीख ले,
उनके दर्शन की खातिर मन-मंदिर में झांकना सीख ले,
सारा जहां है तेरा, तू मुस्कुराना सीख ले.
रोशनी के बाद अंधकार के साये आते हैं,
रात के बाद दिन के सरमाए आते हैं,
सुख हो या दुःख, मुस्कान की शमा जलाना सीख ले,
सारा जहां है तेरा, तू मुस्कुराना सीख ले.
सब ही अपने हैं कोई भी नहीं पराया,
सभी में समाई है एक ही प्रभु के नूर की माया,
बस तू अपना देखने का अंदाज़ बदलना सीख ले,
सारा जहां है तेरा, तू मुस्कुराना सीख ले.
प्रेम प्रभु का वरदान है, इसको याद रखना,
प्रेम सुखी जीवन का अरमान है, कभी मत भूलना,
प्रभु के साथ, सब प्राणियों से प्रेम करना सीख ले,
सारा जहां है तेरा, तू मुस्कुराना सीख ले.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244