संस्मरण

नकलिए

आज से 8 दशक पहले गांव में किसी के यहां बारात आने पर नकलिए अवश्य आते थे। केवल 2 ही व्यक्ति होते थे । उनका काम बारातियों और अन्य उपस्थित लोगों को हंसाना होता था ।गांव में विवाह की तिथि का सभी को पता चल जाता था । बारातियों को ठहराने और खान-पान की व्यवस्था में सभी भागीदार होते थे। रहने के लिए कमरे और चारपाईओं का प्रबंध सब मिलकर कर लेते थे।गांव में कोई सराय, पंचायत घर या धर्मशाला नहीं होती थी।

बारात कहां से और कैसे आ रही है। लड़के का पिता और लडका क्या करता है आदि की पूरी सूचना पहले ही नकलिए एकत्रित कर लेते थे। उनका काम लोगों का मनोरंजन कर इनाम हासिल करना होता था। यह कलाकार अभिनय करने में कुशल और तुरन्त समयानुसार पूरी तैयारी के साथ बारात के स्वागत के साथ ही आ जाते थे।

रेलवे टिकट चैकर
बारात आ गई थी और कुछ देर बाद रात का खाना परोसा जाना था। सफेद जीन की वर्दी तथा सिर पर सोला हैट लगाए रेलवे का टिकट चैकर और उसके साथ खाकी वर्दी और सिर पर पुलिस की खाकी पगड़ी लगाये एक सिपाही ने आकर बारातियों से  पूछा” लड़के का पिता कौन है और हमें उसे गिरफ्तार करना है। उसे शीघ्र बुलाओ, हमने और भी काम करने हैं।”
लड़के का पिता स्वयं ही आ जाता है और घबराते हुए बोला, ” क्या गल्ती हो गई है जो हमें गिरफ्तार करने आये हो। हम तो बाहर से आये हैं।”
” तभी तो, 40 आदमी रेलगाडी में बिना टिकट के कपूरथला से बंगा आये हैं। सबके टिकट के दुगने पैसे देने होंगे।” टिकट चैकर ने कहा।

सिपाही के हाथ में हथकड़ी है और वह लड़के के पिता को पास जाकर पकड़ लेता है । इस पर चैकर सिपाही को डांटते हुए बोला ” पकड़कर रख इसे, बड़ी मुश्किल से मिला है।इसने सरकार को धोखा दिया है।”
” जी हजूर, नहीं छोड़ूंगा, इसने सरकारी पैसा मारा है, इससे टिकट के पैसै और जुर्माना ले लो।” सिपाही का उत्तर था।
टिकट चैकर ने एक चमड़े का छित्तर सिपाही की कमर पर मारा। सब हंसने लगते हैं तो एक और छित्तर सिपाही की कमर पर पड़ता है।
” तीन सौ रुपये बनते हैं और यहां पंडित जी के घर आओ हो। बड़े दयालु हैं और यह सबकी सहायता करते हैं  इसलिए 200 रुपये दे दो और मामला निवट जायेगा।” कहकर  टिकट चैकर ने कोट की जेब से एक कापी और कापिंग पेंसल निकाली और लिखने लगा, मानों सत्य में वह रसीद बना रहा हो। एक छित्तर सिपाही के और जड़ दिया।
लड़के के पिता को पता था कि यह नकलिए हैं और कहा ” यह लो 30 रुपए और खाना खाकर दफा हो जाना ।” सब से अधिक बच्चे और महिलाएं खुश हो जाते हैं। इतनी देर में सभी को खाना परोसना आरम्भ हो जाता है।

दरोगा जी
गांव वाले पुलिस से बहुत डरते हैं और उससे बचना चाहते हैं।  पुलिस वाला गांव में कोई कत्ल, विशेष घटना, चोरी आदि हो जाए,  तभी आता है और उसे देख सभी छुप जाना चाहते हैं। यदि सिपाही के साथ दरोगा हो तो और भी अधिक भय का वातावरण बन जाता है। ऐसे में बारात रात को खाने के लिये बैठ रही हो और वहां पुलिस आ जाए तो सभी भयभीत और सहमे से होते हैं।

खाकी जीन की वर्दी में सिर पर खाकी सोला हैट लगाये पुलिस के दरोगा की तरह और उसका साथी सिपाही पुलिस की वर्दी में आ जाए तो बच्चे और महिलाएं तथा कुछ बाराती सहम जाते हैं।
बड़ी कड़कती आवाज़ में अपने बैंत को इधर उधर घुमाता दरोगा बारातियों को डांटते हुए बोला ” कहां है लडके का पिता और चाचा, इन्होंने मिलकर भूमि के पटे (फर्द) की हेराफेरी की है। लड़के के पिता झाखोलाड़ी गांव के पटवारी हैं और अपने भाई के नाम पटा कर दिया है । वहां से तफ्तीश (पता करना) कर उन दोनों को हिरासत में लेने के लिये हमें भेजा गया है।
” पता कर वह कहां है ? उसे पकड़कर यहां लाओ।” दरोगा ने सिपाही को डांटकर कहा और एक छित्तर कमर पर जड़ दिया।
चारों ओर सन्नाटा छा जाता है और आगे क्या होगा, जानने को बच्चे, महिलायें और कुछ बाराती उत्सुक हो जाते हैं। दरोगा ने सिपाही को मोटी सी गाली देते हुए कहा ” तू कुछ नहीं कर सकता। कहां मेरे साथ आ गया ।” एक छित्तर उसकी कमर पर पड़ा तो बोला” हजूर पटवारी को मैं हाथ नहीं लगा सकता। उससे तो डी सी भी डरता है कि कहीं इसने जमीन के खाते में गल्त लिख दिया तो दुनिया में कोई भी ठीक नहीं कर सकता। आप ही पकड़ लो।” और हाथ जोड़कर पीछे हट गया।
दरोगा गंभीर सोच के बाद लड़के के पिता को कहने लगा ” आप से तो भगवान भी डरता है परंतु तुम हमारे हलके (क्षेत्र) के नहीं हो और हमारा पेट का सवाल है, हमें 100 रुपये बतौर इनाम दे दो।” और हाथ जोड़ दिए।
लड़के के पिता ने कहा” बहुत अच्छे नकलिये हो और आज बहुत अच्छी तरह अपना रोल निभाया है, इसलिए तुम्हें 50 रुपया दे रहा हूं। ले लो और खाना खाने के बाद ही जाना।”
दरोगा और सिपाही ने अपने हाथ जोड़कर बधाई दी और धन्यवाद किया।
(छित्तर या जूते का तला। इस तरह का चमड़े का डेढ़ फुट के लगभग लम्बा टेबल टेनिस के बैट जैसा जब कमर पर मारा जाता है तो चोट नहीं लगती परंतु आवाज़ अधिक होती है।)

— डा वी के शर्मा

डॉ. वी.के. शर्मा

मैं डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय सोलन से सेवा निवृत्त प्रोफेसर बागवानी हूं और लिखने का शौक है। 30 पुस्तक 50 पुस्तिकाएं और 300 लेख प्रकाशित हो चुके हैं। फ्लैट 4, ब्लाक 5ए, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, संजौली, शिमला 171006 हिमाचल प्रदेश। मेल [email protected] मो‌ फो 9816136653