उपकार
कारखाने में काम करते हुए रघु बुरी तरह घायल हो गया। आनन-फानन में उसे अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाॅक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। रघु की पत्नी कमली पर जैैेसे पहाड़ टूट पड़ा। बूढ़े मां-बाप की तो दुनिया ही उजड़ गई। बेटे को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का रघु का सपना अधूरा ही रह गया।
कागजी कार्यवाही पूरी हो जाने के बाद कारखाने के मैनेजर ने एक दिन कमली को ऑफिस में बुलाया और मुआवजे की रकम देते हुए कहा- “रघु इस कारखाने का युवा और कर्मठ कर्मचारी था। उसकी मृत्यु से हमें भी बहुत दुुुख है। हमारी तरफ से जो बन पड़ा, हमने किया। यदि तुम चाहो तो रघु की जगह तुम्हें यहां नौकरी मिल सकती है।” कमली की आंखों के सामने उसका चार साल का बेटा और बूढ़़े सास-ससुर का भूख से बिलबिलाता चेहरा नाचने लगा। उसने हाथ जोड़कर कहा- “मालिक, आपका उपकार हम जिंदगी भर नहीं भूलेंगे”।
मैनेजर कुटिलता से मुस्कराते हुए कमली का यौवन निहारने लगा। नारी की संवेदनशील छठी इंद्रिय से मैनेजर की कुटिलता छुप न सकी और अपनी अस्मिता की रक्षा में कमली की मुट्ठियां बंध गई।
— विनोद प्रसाद