रखा है अब मिरा ही दिल गमों की रोशनाई में।
रहा है पास क्या मेरे भला अब जग हसाई में।
जुदाई सह नहीं सकते बनाया मीत है जिन को,
मजा आता भला क्यों कर हमीं से है जुदाई में।
जुदा होता गया इतना बफ़ा के नाम दे धोखा,
नहीं छोड़ी कसर हमनें उसे दिल की लगाई में।
जरूरी है नहीं राहें सदा सी एक हों सब की,
हर्ज भी है रहा क्या उस कम्बख़्त की भुलाई में।
महंगाई दिनों दिन बढ़ रही हालात बदतर हैं,
मजा आता हुकूमत को गरीबों की रुलाई में।
सर्दी बेशर्म होती है कंपा के हाड है रखती,
फटा है पास कंबल ही ठंडी रातें तन्हाई में।
बुरा भाई जमाना है जरा तुम देख के चलना,
नहीं डरते यहाँ वैरी सदा खंजर घोंपाई में।
— शिव सन्याल