गीतिका
दिखे नसीव निराशा, कदम उठाया है
अधिक सोच लिए सा बड़ा दिखाया है|
गरीब सोच बड़ा सा , यकीन धन पाना
नकदी से हो कारज, लगे निभाया है |
गरीब साथ दुखो का अजीव नाता है,
अमीर आस लिए हक ,तलाश लाया है|
लगी शरीर बिमारी, सदा छुपाता है
मिले अगर जो खाना, दास बताया है।
गई मिली सी रोजी , जुड़ा कमाने में,
बने सभी से रिश्ता, गुजर बनाया है।।
— रेखा मोहन