पहली किरण और तुम
शशधर की प्रथम किरण जब पड़ी तेरे आनन पर
धरा के चँंहू ओर फैल गयी चमकती सी धवल किरण।
देख हो गये विस्मित चर अचर मनुष्य गण
मेंनका सा सौंदर्य लिए यह किसका है श्वेत वर्ण।
जैसे लगता है ओस की बूंदों पर गिरा अरुण किरण
अलौकिक अदम्य अनुपम नहीं उसका कोई वर्णन।
ईर्ष्या में चांदनी भी छिप गयी बादलों के ओट
तिमिर को बेधता हुआ फैला उसका श्वेत ज्योत।
नारी है सचमुच सृष्टि की एक अनुपम सी कृति
उसकी तारीफ में लिखने को नहीं बची कोई भी पंक्ति।
चाहे हो सूर्य की प्रथम किरण या मयंक की धवल किरण
उसकी सौम्य शुभ्रता का शब्दों में नहीं हो सकता वर्णन।
— सविता सिंह मीरा