ग़ज़ल – साल नया
सबकी अपनी मन की अलग मुरादें हैं,
सबकी खाली झोली भर दे साल नया
चलते रहना ही जीवन तू रुकना मत
जीवन की ये रीत सिखाये साल नया
क्या खोया क्या पाया इस बीते कल में
लेकर हाथ तराजू तोले साल नया
नफरत मिटे दिलों में जो भी हो सबके
उपवन प्रीती का महकाये साल नया
बिगडी मेरी बना दे समा मुश्किल भरा,
जीवन की ये रीत सिखाये साल नया|
और भला क्या मांगू रब से सोच ज़रा
सबकी खाली झोली भर दे साल नया
अबके बरस बस खुशियां लाये साल नया
कुदरत कोई न कहर बरपाये साल नया
मैंने उम्मीदों का दामन सा थामा है
उम्मीद कोई फिर टूट न जाये साल
— रेखा मोहन