कविता

समय की चाल

समय की चाल देखिए
है कितनी अनोखी
दिखती है कभी ऊपर कभी नीचे
मगर चलती है समतल
सदियों के गर्त में भी
चलती है एक समान
बदलती दुनिया का
नहीं कोई इसपर प्रभाव
अमीरी गरीबी से
नहीं कोई इसे सरोकार
चाहे सुख हो या दुःख हो कोई
घटती एक अनुपात
कोई कितना भी जोर लगा ले
बदल न पाए इसकी चाल
चाहे तख्त हो या हो ताज
या हो कोई महल बेमिसाल
हो बलशाली या निर्बल कोई
हो अहंकारी या आतातायी
समय के गर्भ में समा गए सारे
देखो समय की चाल है बड़ी बेमिसाल!!!
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P