मजबूरी
“आपकी तबियत इतनी खराब है, क्या भाभी कुछ दिन और नहीं रुक सकतीं थीं?” घर में घुसते ही नेहा गुस्से से बोली।
“पंद्रह दिन तो रह ली बेटा और कितनी छुट्टियाँ लेती?” माँ बहु का पक्ष लेते हुए बोली ।
“सब बहाने हैं माँ, कुछ दिन और रुक जातीं, तो कोई पहाड़ न टूट पड़ता।” नेहा का गुस्सा फूट पड़ा।
“तूँ कितने दिन रुक पाएगी? माँ ने पूछा।
“नौकरी में छुट्टी लेना कौन सा आसान है माँ ? रुआंसी सी नेहा बोली।
माँ की अर्थपूर्ण मुस्कान, नेहा को निरुत्तर कर गई थी।
— अंजु गुप्ता