गीतिका/ग़ज़ल

मैंने देखा है

मैंने देखा है
सूरज की पहली किरण को
प्रस्फुटन से पहले संघर्ष, और अधिक संघर्ष करते हुए
मैंने देखा है
हर्ष व पीड़ा के सम्मिश्रित भावों से उद्यत प्रसूता को,
सृजन से पहले उद्विग्नता को लुकाने का प्रयास करते हुए
मैंने देखा है
झूठ बोलने वाले को
झूठ बोलने से पहले सप्रयास उद्यत होते हुए
मैंने देखा है
लालच से ग्रसित प्राणी को
अपनी लालायित आंखों की लालसा का गोपन करते हुए
मैंने देखा है
क्रोधित प्राणी को
क्रोध करने से पहले अपनी भाव-भंगिमा को तपाते हुए
मैंने देखा है
रोने वाले बालक को
रोने से पहले अपनी मुख-मुद्रा को संकुचित व विस्तारित करते हुए
मैंने देखा है
बरसने वाले बादल को
बरसने से पहले धरा के हर्ष को नमन करते हुए
मैंने देखा है
पीड़ित होने से पहले पीड़ित को
पीड़ा से बचाव के लिए लुञ्ज-पुञ्ज होकर तड़पते हुए
मैंने देखा है
सर्जन की चीराफाड़ी से पहले भयभीत प्राणी को
चीराफाड़ी के बाद भय के विसर्जन से प्रसन्न होते हुए
मैंने देखा है
चोरी करने वाले को
चोरी करने से पहले साहस और चौकन्नता को आमंत्रित करते हुए
मैंने देखा है,
मैंने देखा है,
मैंने देखा है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244