“इतना क्यों सोचती हो रमा ? ऐसी हालत मॆं तुम्हें खुश रहना चाहिये और अच्छा -अच्छा सोचना चाहिये क्योंकि तुम्हारी हर बात का असर होने वाले बच्चे पर पड़ता है !”
कहकर राकेश ने टी वी का चैनल बदल दिया और अपना पसंदीदा देखने लगा…राकेश को हमेशा से ही क्राइम चैनल देखना अच्छा लगता है और यदि रमा कुछ कहती तो वो उसे एक ही बात कहता है “अरे भई मैं ये प्रोग्राम इसलिये देखता हूँ जिससे हमें पता तो चलता रहे कि आजकल दुनियाँ मॆं चल क्या रहा है “!
रमा को ये मारा-मारी और लूटपाट वाले प्रोग्राम पसंद ही नहीँ थे और वो अक्सर ही हार मानकर अपने कानों मॆ लीड लगाकर अपने पसंद के गीत सुनते हुये सो जाया करती..॥
राकेश की उसके प्रति लापरवाही के चलते रमा हमेशा ही परेशान रहती थी, पर आज जब रमा को चक्कर आ रहे थे और राकेश की अनदेखी ने उसे बुरी तरह आहत कर दिया! वो किसी तरह खुद सम्भालते हुये अपने कमरे मॆं गई और राकेश से एक ही बात कह रही थी “राकेश हम अपने बच्चे को ऐसे ऐसे माहौल मॆं जनम देने जा रहे हैं जहाँ सिवाय मारामारी ,लूट ,बलात्कार के अलावा कभी कोई अच्छी ख़बर मिलती ही नहीँ….मैं बहुत चिंतित हूँ राकेश प्लीज़ तुम ये प्रोग्राम्स मत देखा करो ” ।
“तुम सो जाओ रमा….ज्यादा मत सोचो यार ” । राकेश ने रमा की तरफ़ देखे बिना ही कहा और फ़िर टी.वी.देखने लगा !
“अच्छा सुनो ! ” रमा ने फ़िर राकेश के हाथ से टी.वी.का रिमोट लेते हुये कहा !
राकेश ने थोड़े गुस्से भरे अंदाज़ मॆं ही इशारा किया “कहो ?!”
“राकेश ! क्या केवल माँ के व्यवहार का ही असर पड़ता है होने वाले बच्चे पर ? क्या पिता के व्यवहार का कोई फर्क नहीँ पड़ता ?”
“ओह! तो तुम आज मुझे ये सीरियल देखने नहीँ दोगी ? हद है रमा मै दिनभर ऑफिस मॆ थक जाता हूँ और यहाँ आकर तुम्हारी येँ बंदिशें ?”!
“ये बंदिशें नहीँ हैं राकेश थक तो मै भी जाती हूँ दिनभर घर के कामों से,लेकिन क्या कभी तुमने सोचा कि हम दोनों को भी वक्त चाहिये होता है एक-दूसरे के लिये ?
क्या हमारे बीच और कोई बात रही ही नहीँ ? नहीँ राकेश ! मैं इस माहौल मॆं अपने बच्चे को जनम देना नहीँ चाहती “!
“अरे ! पागल हो गई क्या ? ऐसा माहौल ?कैसा माहौल है यहाँ ?।”
राकेश का गुस्सा और भी बढ़ गया….।
“गुस्सा करने से क्या किसी समस्या का हल निकलता है ? देखो आज घर मॆं हम चार लोग हैं और आज जब तुम मेरे या माँ और बाबू जी के लिये ही वक्त नहीँ निकाल पाते तो कल हमारे बच्चे को कैसे वक्त दोगे ? राकेश जब से शादी हुई है तब से तुम्हें मैंने कभी नहीँ देखा माँ और बाबूजी के पास बैठते हुये ,जब तुम्हारे पास माँ और बाबू जी के लिये वक्त नहीँ तो फ़िर बच्चे के लिये कैसे वक्त निकाल पाओगे ?”।
“सीधा -सीधा कहो रमा जो कहना चाहती हो ? ये घुमा-फिरा कर बातें मुझे समझ नहीँ आती “।
“ठीक है सीधी बात ये है राकेश कि ये जो आप ऑफिस से आकर एक घंटा तो ऑफिस की टेंशन लेकर बैठ जाते हो और फ़िर मोबाइल पर फेसबुक ,वाहट्सेप….चलो जब तक मैं फ्री होती हूँ माँ और बाबू जी को खाने के वाद दवा वगैरह से ,तब तक तुम कुछ भी करो लेकिन मेरे कमरे मॆं आते ही कम से कम कुछ वक्त तो होना चाहिये मेरे लिये भी या हम दोनों के लिये ?
मैं ये नहीँ कहती कि टी.वी.मत देखो,फेसबुक ,वाहट्सेप मत देखो….लेकिन हर चीज़ की एक सीमा होती है और तुम हो कि बस ! तुम्हे मेरे कमरे मॆं आने का अहसास तक नहीँ होता….और हमारे बच्चे को हम दोनों के प्यार और वक्त की ज़रूरत होगी ,उसे अच्छे संस्कार देना ,अच्छे-बुरे मॆं फर्क की समझ कराना हम दोँनो का ही दायित्व है राकेश ! तभी हम अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान बना पायेंगे !
मैं कोई काम करने वाली मशीन तो नहीँ हूँ राकेश कि अकेले घर की सारी जिम्मेदारी सम्भालने के साथ ही बच्चे को भी अकेले ही सम्भालू ? नहीँ….नहीँ राकेश बच्चा हम दोनों की जिम्मेदारी है ….अब तुम पर छोड़ती हूँ कि हम अपने बच्चे को जनम दें या…..”!कहते-कहते रमा की आँख नम हो आयी !
रमा की बात करते हुये राकेश झट से उसके होठों पर अपना हाथ रखते हुये बोला।
“चुप करो अब ! जब देखो तब उल्टा -सीधा बोलती रहती हो ,मुझे माफ कर दो रमा….प्लीज़….कम से कम हमारे बच्चे के बारे मॆं तो ऐसा न कहो ? हां ! मानता हूँ कि गलती मेरी ही है ,शादी के दो साल बाद भी मै कभी तुम्हे और तुम्हारी भावनाओ को समझ नहीँ सका…और तुमने भी तो कभी कोई शिकायत नहीँ की ? और देखो अब कभॊ हमारे बच्चे के बारे मॆं कभी ऐसा-वैसा मत कहना ….अब मुझे मेरी गलती का अहसास हो गया है रमा …..आज से तुम्हारे कमरे मॆं आने के बाद हर पल बस हमारा होगा….और मै वादा करता हूँ कि अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान बनाने के लिये सिर्फ तुम ही नहीँ मैं भी पूरा फ़र्ज़ निभाउँगा और माँ-बाबू जी को भी कल से दवाई देने की जिम्मेदारी मेरी ही है ,अब तो मुस्कुरा दो न ? ” । कहकर राकेश ने रमा को गले से लगा लिया…
रमा भी आज मंद-मंदमुस्कुरा रही थी राकेश का ये रुप देखकर।।
— सविता वर्मा “ग़ज़ल”