इन्सानियत की पुकार
ये संसार है खूबसूरत
युग भी बेहद खूबसूरत
वो मुझे चाहता है बहुत
मैं भी चाहता हूँ उसे बहुत
मेरी भी यही है चाहत
यही है उसकी मुहब्बत
तड़फत उधर भी उतनी
जितनी इधर भी इतनी
मुहब्बत का ही दस्तूर
मुहब्बत से रिश्ते नाते
मुहब्बत न हो तो फिर
संसार है शून्य हीन वीरान
सब रिश्ते और सब नाते
मुहब्बत की है बहुमूल्य देन
मुहब्बत है तो सब कुछ है
बिन मुहब्बत सब हीन
बाग में फूलों का आगमन
बसन्त के आने का संकेत
पतझड़ में पत्तों का झरना
मुहब्बत का ही स्वरूप है
नन्हें बच्चों की तरह खिलना
फिर एक दिन मुरझाना
प्रकृति का ही है नियम
सृष्टिकाल से चला आया
प्रेम सौहार्द की दीवार
मुहब्बत का यही पैगाम
सभी से करो मुहब्बत तुम
इन्सानियत कहती करो प्यार
सच्ची धन दौलत मेरे यार
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन