लघुकथा – रहस्य
दो साल बाद कृष्ण की रिहाई जेल से हुई है। कृष्णा का मन पति के आगमन से गदगद हो रहा है।साथ ही साथ एक भय भी उसके अंदर बैठा हुआ है जिसे वह किसी से शेयर भी नहीं कर सकती थी।अपने कृष्ण से भी नहीं।
एकलौती संतान की रिहाई से सत्यव्रत जी को भी प्रसन्न होना चाहिए था , लेकिन यह कैसी मधुमास? खुशी और गम के झूले पर झूल रहे हैं। कृष्णा को पता है उनकी मनोवृत्ति।होता भी क्यों नहीं। आखिर दोनों के भय का सूत्र तो एक ही था।
जेल का ब्रह्मचारी अब पराग रस के लिए बेताब है ,लेकिन कृष्णा ने तत्काल वीटो लगा दिया है ।कहा-” पहले हम गंगा स्नान करेंगे।उसके बाद घर जाकर सत्यनारायण भगवान की कथा सुनेंगे। उसके बाद ही …”।
सत्यव्रत जी बेटा-पतोह के लिए नवीन अंग वस्त्र लाए हैं। कृष्णा ने कहा था,’ कोरा वस्त्र पहनकर ही मैं पति का चरण रज लूंगी।’उसे याद आ रहा है ससुर के शब्द,
‘ गंगा पाप हरणी है’।
“एक कंटेनर गंगा जल भी लेना है ।”
“क्यों?”कृष्ण ने कृष्णा से पूछा।
“घर को भी पवित्र करूंगी न!उसके बाद ही मेरे सरताज के कदम पड़ेंगे उसमें”।
‘खासकर अपने नापाक पलंग को रगड़ रगड़कर धोऊंगी मैं’। मन में यही चल रहा था।
गंगा में कृष्ण और कृष्णा ने कदम रखे।
” आप भी गंगा-स्नान कर लें”। हालांकि वह सत्यव्रत से कहना चाहती थी,”आप भी पाप धो लें”।
सत्यव्रत जी ने उफनती गंगा में अचानक छलांग लगा दी और उसके आंचल में मुंह छुपा लिया।
कृष्ण समझ नहीं पाया ,”पापा ने आत्महत्या क्यों की”। कृष्णा ने अपना मुंह सी लिया था।उसकी आंखों ने औपचारिकता भी नहीं निभाईं।
— उमाकांत भारती