खट्टी मीठी यादें
वर्ष बीत गया कुछ कुछ कवड़ी मगर सच्ची यादें
सबके जीवन को बदला कुछ अच्छी सच्ची बातें
आहिस्ता आहिस्ता नव वर्ष आ ही गया करें स्वागत
नव ऊर्जा नव उमंग नव उत्साह संग आओ करें स्वागत
कुदरत ने ये कैसा कहर बरपाया कांप उठा इंसान
सांसों ही सांसों में जहर घुल गया फंस गई थी जान
डर डरकर दूर दूर रहकर पल पल जीता इंसान
हर पल मौत का साया मंडराता था कांपता जहान
क्या होगा कैसे होगा कोई ना समंझ पाता था
इंसान के समक्ष सात्विक जीवन ही आधार था
मौत के खौफ से सीख लिया जीने हुनर इंसान
धन,दौलत सोना चांदी सब माया है समझा इंसान
कुछ ऐसा शपथ लें और पूर्ण करें हम सारे वादे
जिंदगी और कुछ भी नहीं केवल खट्टी मिठ्ठी यादे
लगता था जैसे सब कुछ खो जाएगा मन बेहाल
जद्दोजहद थी जीवन की उतने ही था आटा दाल
सम्हलकर चलना यारों जिन्दगी ना कोई ठिकाना
कालचक्र चलता पहिया लग जाते अक्ल ठिकाना
— राजेन्द्र कुमार पाण्डेय ” राज “