बसंती बयार
फिजां में बसंती बयार का आलम
जुल्फों को हवा में यूँ ना बिखराओ
बादल का मिजाज भी कुछ ठीक नही
इस बात पे जरा गौर फरमाओ
गुलशन मे मधुकर गुंजन है करता
रसराज बहुत ही आवारा है
कलियों का होठ चुमकर वो पागल
बन बैठा सबका बहुत दुलारा है
अपनी आँचल की जरा हवा दे दो
कुछ चैन दिल को भी मिल जाये
तुमसे ये दिल प्यार कर मजनूँ है बना
इस दिल को प्रेम की दवा मिल जाये
जब जब दिल में धड़कन होता है
दिल बार बार मेरा मचलता है
मेरी प्यार की कोई इम्तहान मत लो
तन तेरे लिये ही तो जिन्दा है
प्रेम की रूत धरा पर बहने तो दो
अपनी पलको में मुझे छुपा लेना
ये प्रेम रोग लाईलाज है जानम
प्रेम रोग की कोई दवा देना
— उदय किशोर साह