गीतिका/ग़ज़ल

बादल पे पांव हैं…

बादल पे पांव हैं, दृष्टि में मां,
अपनों में मां, सपनों में मां,
सृष्टि के कण-कण में मां,
जिधर नजर घुमाऊं मां-ही-मां.
आनंद स्वरूप हैं मां,
सर्दियों में धूप है मां,
गर्मियों में छांव है मां,
स्नेहिल-प्रेमिल अनूप है मां.
घर में मां, मन में मां,
यादों में मां, वादों में मां,
कहो तो कहां नहीं है मां,
सृजन की साक्षात मूर्ति है मां.
एक मां ही तो ऐसी नेमत है,
मरकर भी कभी मर ही नहीं पाती है,
कयामत तक आशीर्वाद का हाथ,
सिर पर रखकर चैन पाती है.
बादल पे पांव हैं, दृष्टि में मां,
अपनों में मां, सपनों में मां,
सृष्टि के कण-कण में मां,
जिधर नजर घुमाऊं मां-ही-मां.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244