लघुकथा

लघुकथा – समझौता

“हैलो माँ कैसी हो ?”
पिता की आवाज सुनकर बेटी ने आँसू पोंछा और सामान्य स्थिति की आवाज में फोन पर कहा, “ठीक हूँ बाबूजी।”
 “घर पर सब ठीक है न बेटा?”
 “हाँ बाबूजी! सब ठीक है।”
 बेटी को छोटे भाई की बातें याद आ गई। “दीदी, अब समझौता के सिवा कोई उपाय भी नहीं है। तुमने भी आपका बंटी पढ़ा है। कहीं तुम्हारा बेटा भी माँ और पिता के द्वंद की बलि न चढ़ जाए।”
”      “
“बाबूजी! आप मेरी चिंता नहीं करना। पहले आप कितने स्वस्थ थे? बीपी, शुगर कुछ नहीं था।”
” हाँ बेटा! तुम्हारी चिंता…!”
“बाबूजी! सब ठीक हो जायेगा।”
 पिता की आँखें गीली हो चुकी थीं। बेटी में अपनी माँ की छवि दिखाई दी, आत्मविश्वास से भरपूर।
— निर्मल कुमार डे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]