मुक्तक/दोहा

पुष्प पर दोहे

पुष्प सुखद लगते हमें,देकर नित्य सुगंध।
मधुर करें ये पुष्प तो,आपस के संबंध ।।
पुष्प विहँसते ही रहें,बाधाओं के बीच।
कमल खिले हरदम यहाँ,भले ताल में कीच।।
पुष्प खुशी में,पीर में,सदा निभाते साथ।
श्रद्धा को अभिव्यक्त कर,मान सौंपते हाथ।।
पुष्पों की उत्कृष्ट नित,सचमुच में मुस्कान।
पुष्प कहें हमसे यही,सदा बचाना आन।।
पुष्प कहीं भी खिल रहे,सरल-सहज का बोध।
करते हरदम पार वे,कैसा हो अवरोध।।
पुष्प मसीहा प्रेम के,पुष्प अमन की शान।
पुष्पों ने बाँटी खुशी,बनकर मंगलगान।।
पुष्प राग-अनुराग हैं,पुष्प हर्ष-उल्लास।
पुष्प भावना नेह की,पुष्प मिलन-मधुमास।।
पुष्ष सुखद अहसास दें,भक्तिभाव में लीन।
उसको भी देते खुशी,जो रहता ग़मगीन।।
पुष्प गीत,सुर,तान हैं,गीत दिलों की बात।
पुष्प प्रीति का आइना,पुष्प एक सौगात।।
पुष्प घरों की शान हैं,उपवन का सम्मान।
पुष्प साधना मौन रह,पुष्प रचें उत्थान।।
     — प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]