लेखनी
मेरे हम नज़र हमसफर मेरे दर्द का बयां हो तुम
रहने दे ये पर्दादरी मेंरे दास्तां की जुबां हो तुम
सब छोड़ कर तन्हां गये तूने न छोड़ा साथ
ख़ामोशियों में भी रही बनकर मेंरी सदा हो तुम
राज़दार बनवाक२ तूने दिल का राज दिया
अब कैसी पर्दादारी मेंरी हया हो तुम
सब लिख दिया कागज़ पे तूने जो कहा दिल ने
आंसू को लफ्ज़ो में किया तब्दील वो अदा हो तुम
शब़े तीरग़ी में जब ग़म की गरज रही थी घटाएं
उन गुज़रे बेबस लम्हों का राजदां हो तुम
ऐ लेखनी तू अजीज़ है छोड़ा नहीं दामन कभी
तूने दिया रहवर मुझे मेंरे लिए खुदा हो तुम
— पुष्पा “स्वाती”