गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दुआओं में अपनी असर ढूंढते हैं
तुम्हें आजकल दर बदर ढूंढते हैं।

मिलादे मुझे तुम तक जो पहुंचे
कि शहर में हम ऐसी डगर ढूंढते हैं ।

है मालूम के डूब जाएगी कश्ती
हम लहरों में आकर भवर ढूंढते हैं।

‌निगाहें मिलीं पर रहीं बेअसर
नज़र में बसे वो नज़र ढूंढते हैं।

जिसे पीके मीरा मुकम्मल हुई
मोहब्बत का ऐसा ज़हर ढूंढते हैं।

जो मर के भी जानिब जुदा ना हुए
वो क्या लोग थे ये खबर ढूंढते हैं।

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर