कविता

चीरकर अपने हृदय को

चीरकर अपने हृदय को
पाशमुक्त होना चाहती हूं
वेदना के असहय दुख से
पार होना चाहती हूं
हूं मै कुछ तो रक्तरंजित
छल छद्म असंवेदना से
पीकर जहर हर हाल मे
अमरत्व पाना चाहती हूं
चीरकर अपने हृदय को
पाशमुक्त होना चाहती हूं
वेदना के असहय दुख से
पार होना चाहती हूं
किन्चित नही भयभीत भी मै
हूं सुशोभित निजमान से मै
गाकर अब स्व का गान मै
खुद की आवाज बनना चाहती हूं
बस धरा की ही नही मै
गगन का अभिमान बनना चाहती हूं
चीरकर अपने हृदय को
पाशमुक्त होना चाहती हूं
वेदना के असहय दुख से
पार होना चाहती हूं
पूजन करू कर्म की मै
निज भाल लिखके सिन्दूर से
होकर दृढप्रतिग्य मै
सम्मान बनना चाहती हूं
मै धरा का ही नही
गगन का अभिमान बनना चाहती हूं
चीरकर अपने हृदय को
पाशमुक्त होना चाहती हूं
ना सजू मै ना मै सवरू
रंगरूप से अन्जान बनना चाहती हूं
सौन्दर्य के प्रतिमान से हो विमुख
गूंज जयगान बनना चाहती हूं
चिर कर अपने हृदय को
पाशमुक्त होना चाहती हूं

— वन्दना श्रीवास्तव

वन्दना श्रीवास्तव

शिक्षिका व कवयित्री, जौनपुर-उत्तर प्रदेश M- 9161225525