कविता

जीवन भी इक गणित

जीवन भी इक गणित ही है,
आओ इसे सुलझा लें हम।
जब आ जाये समझ हमें यह,
फिर न उलझें कहीं भी मन।।
जोड़ घटाना ,हानि लाभ औ,
क्या देना है क्या है लेना।
क्या है रखना ,क्या है बचाना,
क्या है खोया ,क्या है पाना।।
सारा जीवन व्यतीत करें हम,
जीवन के इस गुना भाग में।
 कभी दुखी करें हम औरों को,
औ कभी जलें हम ही आग में।।
छोड़ो गणित का जोड़ घटाना,
आओ हम निश्छल हो जाएं।
गणित का क्षेत्र गनितज्ञ को सौंप
मन को गणित से मुक्त करायें।।
जीवन तो वो जीवन होंवें,
जो होंवें सच्चा सहज सरल।
अध्ययन में बस होंवें गणित,
जीवन का हम खुद खोजें हल।।
— ममता श्रवण अग्रवाल

ममता श्रवण अग्रवाल

साहित्यकार सतना 8319087003