कविता

कविता

खामोश हूँ, पर गूंगा नहीं
दूर हूँ तुमसे पर मजबूर नहीं।
तेरी यादें मेरे साथ है बस तू साथ नहीं होती,
तेरी आवाज़ आती है पर तुम नहीं आती।
हर रात तेरे सपनें मुझे हैं तड़पाती
ये दिन तो कट जाते है पर रातें नहीं कट पाती।
बस एक बार काश तुम मिल जाते
कुछ अधुरी, कुछ अनकही बातें सुन जाते।
काश, ऐसा कुछ हो जाता,
दिल को शुकून मिल जाता।
पर मैं जानता हूँ कि ऐसा कुछ नहीं हो पाएगा,
जो चला गया वो लौटकर नहीं आएगा।
बस दिल को शुकून है कि एक दिन तेरे पास आऊंगा,
तुमसे मिलकर बहुत कुछ बताऊंगा।
— मृदुल शरण