मुक्तक
हार देख कर डर नहीं,देख भाल की धार को।
उठा ले ढाल को अब ,पलट दे हर प्रहार को।।
ठान लें ये जान ले ये मान ले खून में उबाल दे।
रौद्र रूप विकराल ले धड़ों को गगन में उछाल दे।।
प्रवीण माटी
हार देख कर डर नहीं,देख भाल की धार को।
उठा ले ढाल को अब ,पलट दे हर प्रहार को।।
ठान लें ये जान ले ये मान ले खून में उबाल दे।
रौद्र रूप विकराल ले धड़ों को गगन में उछाल दे।।
प्रवीण माटी