पुरातत्व व इतिहास की अनेक धरोहरें हमें हमारे गौरवशाली अतीत से मिलाती हैं।ऐसी धरोहरें जिनमें भव्यता भी है,और वैभव भी।उन्हीं में से एक है-मंडला जिले के रामनगर में स्थित गोंडकालीन स्मारक मोती महल । जिसका निर्माण सन् 1667 ईसवी में गोंड राजा हृदय शाह द्वारा पवित्र नर्मदा नदी के किनारे करवाया गया था |इस महल को ”मोती महल” या ”राजा का महल” भी कहा जाता है | इस महल का मुख उत्तर दिशा की ओर नर्मदा नदी की ओर है | मोती महल का आकार आयताकार है जो बाहर से 64.5 मीटर लंबा और 61 मीटर चौड़ा है | महल के भीतर विशाल आँगन है जिसके बीचो-बीच एक विशाल कुंड है जिसमें पानी भरा रहता है इसे स्नानागार भी कहा जाता है | महल के सामने एक बड़ा गेट है |मोतीमहल तीन मंजिला है , जिसमें ऊपर जाने के लिए सीढियां बनी हैं | महल में तलघर भी है | मोती महल की हर मंजिल पर बहुत से छोटे बड़े कमरे हैं जिनमे बीच के और बहार की और स्थित कमरे लंबे है और बगल के और अन्दर के ओर के कमरे आकार में छोटे हैं | जिनमे राजा का अन्तः पुर निवास हुआ करता था| माना जाता है कि अपने निर्माण के समय महल नर्मदा नदी से 80 फीट के ऊंचाई पर था |मोती महल के आँगन की दीवार में लेख जडा हुआ है जिसमें गोंड राजवंश के संस्थापक यदुराय जिन्हें जादौराय भी कहा जाता है से लेकर हृदय शाह तक के राजाओं की वंशावली दी गई है | इस लेख में तिथि विक्रम संवत् 1724 (सन् 1667 ) लिखी हुई है | महल की दीवार से लगा हांथी खाना है जिसमें हांथियों को रखा जाता था | हांथी खाने के पास ही घोड़ों को रखने भी व्यवस्था थी | महल का निर्माण चूने , गारे , गुड और बेल की गोंद से किया गया है | मोती महल में कुछ सुरंगे भी है माना जाता है कि ये सुरंगे जबलपुर के मदन महल और मंडला के किले में खुलती हैं | मोती महल गोंड राजाओं की शक्ति और वैभवशाली परम्परा की अनमोल धरोवर है |मध्यप्रदेश शासन द्वारा मोती महल को सन् 1984 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है |
किवदंतियों के अनुसार राजा हृदय शाह तंत्र विद्या में माहिर थे | हृदय शाह ने तंत्र शक्ति से मोती महल का निर्माण ढाई दिन में करवाया था जिसमें महल के पत्थर हवा में उड़ कर आये थे | परन्तु आधुनिक इतिहासकार इस बात को सिरे से नकारते है उनके अनुसार हृदय शाह तंत्र विद्या के बहुत बड़े जानकार थे परन्तु इस महल का निर्माण में पत्थर हवा में उड़ कर आने की बात सही नहीं कही जा सकती और महल का निर्माण सन् 1651 से सन् 1667 के बीच हुआ है और महल निर्माण में लगे अष्टफलकीय पत्थर बाहर से बुलवाये गये थे और जो पत्थर काला पहाड़ के पास रखे हें वो महल निर्माण के बाद बचे पत्थर हैं |यह ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण धरोहर है।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे