काला कौवा
काला कौवा शोर मचाता,
काला कौवा तनिक न भाता।
सभी मारते उसको पत्थर ,
पर वो जल्दी से उड़ जाता।
घर की छत पर जब भी आता ,
मन को वो शंकित कर जाता।
नन्हे चीकू के हाथों से ,
छीन रोटियां वो उड़ जाता।
जब भी वो चालाकी करता,
कौवा हरदम मुंह की खाता।
—
महेंद्र कुमार वर्मा