लघुकथा

गऊ

अपनेपन और प्यार से लबालब, बिलकुल गऊ थी छवि। जिम्मेदारियों और रिश्तों में गूंथे जाना उसे गर्व का एहसास देता था।

देवरानी के बेटे की सालगिरह पर सभी इकठ्ठे हुए थे और हमेशा की तरह छवि ने सारा काम बखूबी संभाल रखा था। यकायक सबका खरीदारी का प्रोग्राम बना।

“रात का खाना भी बनाना है। घर कौन रुकेगा?” छवि की सास ने पूछा।

“हमारी गऊ भाभी हैं ना।” छवि की देवरानी के इतना बोलते ही सब हँसने लगे।

“पर अगर कोई जरूरत से ज्यादा फायदा उठाने लगे, तो कभी कभार गऊ भी सींग मार ही देती है।” कहते हुए छवि पर्स उठा कर गाड़ी में जा बैठी। न जाने क्यों पर आज “अस्तित्वहीन” होती हुई गऊ के सींग आ ही गए थे।

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 27 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed