चलो गण तंत्र दिवस मनाएं
अपने वीर शहीदों की याद में शीश झुकाएं
क्या इस आजादी के जश्न में
गली गली गांव गांव
शहर बाजार सच में आजाद हो गया
वो सुनसान गलियों का ख़ौफ़
दिल को दहला देनें वाली आहट
सहमी सहमी पदचाप
एक भयावनी चीख
अपहरण बलात्कार
अपनों से पराए से
खूंखार दरिंदे से
क्या अस्तित्व बचा पानें में
आजाद हो गया
एढ़ियाँ घिस घिस कर
बदहवास एक दर से दुसरे दर तक
उम्मीदों के पुल बाँधते
डिगरियां धूल फांकते
जिंदगी को नई किरण दे पानें
में आजाद हो गया
नंगे बदन चिपके पेट
गिड़गिड़ाते दो हाथ
आज के भविष्य को बचा पानें में
आजाद हो गया
बढ़ती महँगाई के थपेड़ों से त्रस्त
जन जीवन को पटरी पर लाने के लिए
क्या देश आजाद हो गया
भ्रष्टाचार,घोटाले,लोलुपता की जंजीरों
में बँधे देश को खोखला करने वाले कर्णधार
सच्चरित्र निर्माण कर
नई दिशा दे पाएंगे
हम आजाद होते हुए भी गुलाम हैं
आजादी का जश्न
तभी बन पाएगा
जब आजादी के सही मायने
हर कोई समझ जाएगा
— शिव सन्याल