वफा–ए– वतन
नग्न कर दिया हैं ए हम वतनों तुमने हमें
हमारी तमन्ना–ए–इबादत को भी
बड़े ही अरमान से निकले थे सफरोशी के लिए
देखो भेजा हैं हमें किसी के प्यार ने
किसी ने भेजा था सिंदूर अपना
और किसी के लाड ने सरहद पर
कोई राखी न रोई थी जब बिदा होने के अवसर पर
कोई दोस्त ने न बोला कुछ विदा होने के
मौके पर
भुलाया था सभी रिश्तों को
जब हम ने वतन की खातिर
जब सुनी थी बेहूदगी अपने ही हमवतन से
किसी ने दुष्चरित्र बोला किसी ने बोला बेईमान,गुंडा
कभी कोई क्या समझेगा हालत
जिसे जेलते हैं हम सरहद पर
नहीं देंगे तुम्हे कोई चुनौती सरहद पर आने की
किंतु कुछ तो तमा रखो हद ही में रहने की
मत उड़ेलों तुम्हारा सियासती रंग इस वर्दी पर
ये
पवित्र ही हैं इसे पवित्र ही रहने दो
— जयश्री बिरमी