इतिहास

नेताजी तो एक ही थे – सुभाषचन्द्र बोस

जहां कहीं नेताजी शब्द सामने आता है। हमारी कल्पनाओं में एक ही चित्र उभरकर सामने आता है और वह है नेताजी सुभाषचन्द्र बोस। सुभाष बोस के आगे एक बार लग गया नेताजी का शब्द अतने अधिक उच्चतम शिखर और अपार ऊर्जाओं का बोध कराता है कि इनके सामने बाकी सारे फीके पड़ जाते हैं। नेताजी के अलावा किसी ओर के नाम के साथ नेताजी लगाते ही या तो व्यंग्य का बोध होता है अथवा किन्हीं अन्य तरह के भावों का। इन भावों में रमण करने के लिए हम सभी स्वतंत्र हैं। इसे सार्वजनीन रूप से कहने की कोई आवश्यकता नहीं।

सभी कृतज्ञ देशवासी आजादी दिलाने में सर्वोपरि और महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयन्ती मना रहे हैं।

            सुभाषचन्द्र बोस का नाम ही अपार ऊर्जा और असीम शक्तियों का संचार करने वाला है। दुनिया भर के मुल्कों के स्वाधीनता चेतना और दासत्व से मुक्ति के अभियान में सर्वाधिक चर्चित और यथोचित सम्मान से वंचित हस्ताक्षर के रूप में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को जाना जाता है जिनके बारे में आज तक भी संशयों के बादल छँट नहीं पाए हैं।

नेताजी की महान शख्सियत के बारे में समझदार लोगों का साफ-साफ आकलन है कि उनके विराट कद से वाकिफ लोगों ने भी उनके बारे में ईमानदारी और पारदर्शिता नहीं रखी तथा परवर्ती कर्णधारों ने अपनी छवि को ऊँचाई देने और बरकरार रखने के लिए सायास ऎसा बहुत कुछ किया जिसकी वजह से नेताजी को इतिहास में अपेक्षित सम्मान व स्थान नहीं मिल पाया।

इन सबके बावजूद नेताजी आज भी भारतीय जन-मन में इतने गहरे तक बसे हुए हैं कि उनका मुकाबला कोई दूसरा नहीं कर पा रहा है। यह श्रद्धा इस बात का संकेत है कि नेताजी के कर्मयोग को सदियों तक कोई भुला नहीं पाएगा।

नेताजी के जीवन और स्वाधीनता समर के महायौद्धा के रूप में जानने और जन-मन तक उनसे जुड़ी जानकारी पहुंचाने के प्रयास हाल ही हुए हैं फिर भी देशवासी आज भी आतुर हैं नेताजी के बारे में सब कुछ जाने लेने को, पूरी पारदर्शिता से उन सभी रहस्यों का उद्घाटन होना चाहिए, जो अपेक्षित हैं।

सुभाषचन्द्र बोस को लेकर अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है ताकि देश की वर्तमान और आने वाली पीढ़ियां उनसे प्रेरणा पा कर भारतीय स्वाभिमान, साहस और पराक्रम का अनुकरण कर सकें।  इसके लिए वर्तमान से ज्यादा अनुकूल समय कभी नहीं आ सकता।

देश आज जिन गरिमामय स्थितियों में आगे बढ़ रहा है उसमें राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीयता और स्वदेशी स्वाभिमान के वटवृक्षों को पनपाने कराने के लिए सर्वथा अनुकूल माहौल है और इसका पूरा-पूरा उपयोग करते हुए  हमें वह सब कुछ करना होगा, जो कर सकते हैं। आने वाले समय के भरोसे नहीं रहा जा सकता।

नेताजी ने जिस प्रखर राष्ट्रवाद को परिपुष्ट किया, उस पर चलते हुए भारत की वैश्विक छवि को और अधिक दैदीप्यमान बनाने के लिए हम सभी की भागीदारी जरूरी है।

कुछ लोग जरूर हैं जो हमारी प्राचीन व परंपरागत अस्मिता का कबाड़ा कर देने के लिए अपनी ही अपनी बातें करते हैं, अपने ही अपने इर्द-गिर्द पूरे देश को चलाना चाहते हैं, और इसलिए उन गर्वीली परंपराओं के गौरव से हमें अनभिज्ञ रखना चाहते हैं जिनके जान लेने भर से उन लोगों की अस्मिता खतरे में पड़ जाएगी और सब कुछ छीन जाने का डर भी है।

देश अब समझदारी और सत्यान्वेषण के दौर से गुजर रहा है। ऎसे में यह जरूरी हो चला है कि भारतीय स्वाभिमान को जगाया जाए, संस्कृति की जड़ों से जुड़कर अपनी परंपराओं को आत्मसात करते हुए विश्व गुरु के सफर को वेग प्रदान किया जाए। लेकिन इन सबके लिए हमें लौटना होगा हमारे महापुरुषों और परंपराओं की ओर। यही हमारे केन्द्र हैं और इन्हीं की परिधियों में रहते हुए हम राष्ट्रपुरुष की आराधना के स्वर गुंजाते हुए मातृभूमि की सेवा कर उऋण हो सकते हैं।

आज हमारे बीच होते तो क्या कुछ होता, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। आज की दुर्दशा को देखकर वे सबसे ज्यादा व्यथित होते। हो सकता है कि नेताजी ने देश के इन हालातों को देखकर ही संन्यासी जीवन ग्रहण कर लिया और गुमनाम जिन्दगी अंगीकार कर ली।

इन्टरनेट और दूसरे सभी प्रकार की नेटवर्किंग को देखकर वे प्रसन्न होने की बजाय दुःखी ज्यादा होते। ‘‘ तुम मुझे खून दो – मैं तुम्हें आजादी दूँगा ’’ का नारा गुंजाकर वे यदि युवाओं का आह्वान भी करते तो देश के लाखों युवा ट्वीटर, व्हाट्सअप और फेसबुक सहित तमाम प्रकार के सोशल मीडिया पर संदेश को इतना अधिक फैला देते कि यह बार-बार दोहरान करता हुआ अरबों बार आ जाता।

व्यक्तिपूजा से लेकर भ्रष्टाचार और पाश्चात्य चकाचौंध से प्रभावित महान लोगों की संप्रभुता भरी हरकतों और भारतीय जनमानस को देखकर उकता जाते, चाईनीज माल के प्रति हमारी समर्पित भावना और निजी स्वार्थों को देखकर सर पीट लेते।

नेताजी को दुःख ही होता अपने नेताजी नाम से, इतनी घिन आ जाती कि वे देश भर के अखबारों और चैनलों में विज्ञापन दे देकर अपने नाम के आगे से ‘नेताजी’ शब्द हटवा देते। सुभाषचन्द्र बोस आज हमारे बीच होते तो बहुत कुछ ऎसा होता जिसकी वजह से उन्हें खिन्न होना पड़ता और सचमुच वे अवसाद में आ जाते।

हम कल्पना कर सकते हैं कि आज नेताजी होते तो हम देशवासियों, हमारे कर्णधारों और दूसरे लोगों के लिए क्या-क्या नहीं सोचते रहते। भरोसा नहीं है हमें, हो सकता है वे आज भी कहीं दूर बैठे हमारी हरकतों को देख रहे हैं, और यदि सच में ऎसा है तो  उनके पास पछतावे के सिवा क्या बचा होगा? कुछ करना ही चाहते हैं तो नेताजी की तरह खुद को बनाएं और देश की सेवा में लगाएं। केवल बातों और भाषणों से कुछ होने वाला नहीं।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयन्ती पर हार्दिक शुभकामनाएँ …

डॉ.दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

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