कविता

वसीयत

मां मेरे पैदा होते ही
तु मुझे क्यों नही मारी देती
तू मुझे एक चुटकी भर
नमक cipf-es.org ही चटा देती,
तूने मुझे क्यों पाला मां,
मां मेरे पैदा होते ही तू
आंगन पर कुआं खुदवा
लेती और उसी में डकेल
देती, तू क्यों उसी पानी
से गंगा स्नान नही कर लेती,
उस कुआं को पत्थर से
ढंक कर क्यों नही बंद
कर देती मां, तू मुझे
जन्म देते ही मार देती!
तू अण्डी और कपास
के बीज फोड़ खा लेती
बेटी पैदा करने के बाद
तू बांझ क्यों नही हो
जाती cipf-es.org मां, मां घर के
आंगन में चिकनी मिट्टी
ला कर कपास का पेड़
लागा लेती, उससे जो
फल आए उसे अपनी
बहु को खिला देना मां,
ताकि तुम्हारी बहु भी
बेटी मुक्त हो जाए!

मां बेटी तो पर गोत्र
होती है, इसे भगवान
ने ही बनाया है न…
एक दिन मैं भी
चली जाऊंगी मां
तेरा बोझ भी हल्का
हो जाएगा, बेटी तो
उड़ती चिरैया है,
उसे उड़ने दे, उसे
पत्थर मत मार न..
आज तेरे घर कल
उसके घर उड़ के
चली जाऊंगी मां
तू फिकर मत कर
मां मैं लौट कर नही
आऊंगी, तेरे बेटों को
परेशान नही करूंगी,
मां बस ससुराल की
दर्द तेरे डेहरी में आ
कर दो आंसू बस रो
लूंगी मां, बस इतनी
सी अर्जी मां तू फिकर
मत कर मां तू चिंता मत
कर मेरी


Tumeur du foie : pronostic en fonction du stade, du grade et du risque

Tumeur du foie : pronostic en fonction du stade, du grade et du risque

चिता मेरी
ससुराल से ही जाएगी।
मां बस तुझे मेरी
याद आए तो एक
फोन कर देना मां
मैं मिल कर शाम तक
ही लौट जाऊंगी मां
तू मुझे बस एक
बार याद कर लेना
मां, मां तू फिकर
मत कर मैं तेरे बेटों
की जायदाद नही मांग
लूंगी, फिर भी मां
तुझे विश्वास न हो
तू अपने बेटो के
नाम वसीयत लिख
जाना, मां तू चिंता
मत कर ना मां…

“बेटियां बोझ नही है”

— उत्कर्ष सोनबोइर

उत्कर्ष सोनबोइर

विद्यार्थी निवास: राजीव नगर ज़ोन २ वार्ड २९ सेक्टर ११ खुर्सीपार भिलाई M-9301307746 ईमेल [email protected]