दोहे – धूप
देखो आँगन आ गयी, प्यारी-प्यारी धूप।
सुंदर इसकी है किरण, लगती बड़ी अनूप।।
ठंडी जब बढ़ने लगे, करे धूप से प्यार।
हाथ सेंकने को सभी, रहते हैं तैयार।।
दिखते सूरज रौशनी, पक्षी करते शोर।
धूप सेंकने के लिये, उठ जाते हैं भोर।।
ठंडी मौसम आ गयी, करे सबेरे योग।
दौड़ लगाते रोज जी, काया रहे निरोग।।
धूप निकलती रोज हैं, लाती है मुस्कान।
ठंडी-ठंडी देह में, भर देती है जान।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”