रोटी
रोटी!
राजू ! परिवार का भरण-पोषण करने के लिए करता है मजदूरी!
मालती ने बांध दी चार रोटियां थैले में हर रोज़ की तरह।
उसका यार कालू घर से बाहर निकलते ही बोला “चलो आज तो रैली में पूरे 200 रूपए मिलेंगे बिना मजदूरी के।”
राजू बोला” मैं !रोटी की जुगत में मजदूरी करता हूं ताकि भूखे पेट में अनाज का दाना लेकर आ पाऊं!”
बाकि ये रैली रोज रोटी थोड़ी न देगी, तूं जा यार!
पेट को रोज रोटी चाहिए, रैली नहीं ।
रैलियां रोज़ नहीं होती भूख रोज़ लगती है ! भाई तूं ही जा !
प्रवीण माटी