स्वतंत्र मुक्तक
जो तुम्हारे मन को भा जाए,मैं वो प्रीत लिख दूंगी।
जगाएं जो दिलों में सपने सुहाने,मैं वो गीत लिख दूंगी।
उलझने बहुत है जिंदगी की इस मचलन में “मगर”,,,
सुलझा दे जो उलझनें सभी,मैं वो रीत लिख दूंगी।।
सविता राजपुरोहित
जो तुम्हारे मन को भा जाए,मैं वो प्रीत लिख दूंगी।
जगाएं जो दिलों में सपने सुहाने,मैं वो गीत लिख दूंगी।
उलझने बहुत है जिंदगी की इस मचलन में “मगर”,,,
सुलझा दे जो उलझनें सभी,मैं वो रीत लिख दूंगी।।
सविता राजपुरोहित