कविता

देहाती

 

एक देहाती दिल्ली में आया
कह रहा ये मैट्रो नहीं देख पाया
शहरी ने कहा
“कुछ नहीं रखा इन बैलगाड़ियों और बैल में”
चलो आज बैठाता हूँ मेट्रो रेल में”
मैट्रो का सफर सुहाना हो रहा था
मगर भीड में हर कोई अनजाना हो रहा था
बूढ़े महाशय को सीट ना
मिल पाई
अब मैं ठहरा देहाती
क्या करूँ भाई
सीट मिल पाना मैट्रो में
नहीं इतना आसान है
देखूँ
वृद्ध, विकलांग वाली सीटों पर
युवा पीढ़ी विराजमान है
हाथ में मोबाइल
संगीत की धुन पर
सिर हिलाये जा रहा था
यो यो हनी सिंह
यो यो हनी सिंह
गाए जा रहा था
महाशय ने पास में जाकर
दी बूढ़े होने दुहाई
मगर इस नये तानसेन ने
नजर ना मिलाई
मेरा भी देहाती जाग गया
बोला “खड्या होले न झकोई”
अब ये सवाल रहा मन में
ये इतनी नई फसल
किसने बोई
वो खड़ा होकर पता नहीं
अंग्रेजी में क्या-क्या बोल गया
हाँ एक तकलीफ थी सुनने में
वो मेरे कानों को खोल गया
लगता है
संस्कृति का पाठ
यहां पढाया नहीं जाता
बांसुरी और मृदंग यहां
बजाया नहीं जाता
पता नहीं ये कौन-सी किताबों की सीख है
इस से बढ़िया मेरा गांव ही
ठीक है

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733