जितेंद्र कबीर के मुक्तक-पोस्टर्स- 4
जितेंद्र कबीर के मुक्तक-पोस्टर्स की यह चौथी कड़ी है. हमने जितेंद्र भाई से उनके लेखन की पृष्ठभूमि के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया-
“मुझे भक्ति काल में संत कबीर जी के दोहे और रीतिकाल में बिहारी जी के दोहे बहुत पसंद रहे हैं. कम शब्दों में बहुत कुछ कह देना इन दोनों की विशेषता थी. अपने कॉलेज के दिनों में मैं थोड़ी बहुत तुकांत कविताएं लिखा करता था, जो सहपाठियों में पसंद की जाती थीं, फिर जब नौकरी लग गई तो यह सिलसिला छूट गया. अपनी जिंदगी में लगभग पंद्रह से बीस साल मैंने अपने आलसीपन में यूं ही खुद को बहलाने में काटे कि जब समय होगा, सुविधाएं होंगी तो लिखूंगा.”
यह तो आप लोगों ने भी महसूस किया होगा, कि समय और सुविधाएं मिलती नहीं छीनी जाती हैं. अक्सर ऐसा ही होता है. हम दोहा पढ़ते हैं-
“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥”
लेकिन करते समय भूल जाते हैं, या कि कहिए कि जब समय आता है, तभी काम हो पाता है.
“रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥”
जितेंद्र भाई के साहित्य सृजन का अनुकूल समय आ गया और यह अनुकूल समय था कोरोना काल. उनका कहना है-
“कोरोना के चलते जब लॉकडाउन हुआ तो स्कूल जाना बंद हो गया और एकदम से समय-ही-समय हो गया. मैंने सोचा कि अगर मुझे कभी कुछ लिखना है तो यही समय है, अभी नहीं तो कभी नहीं. शुरु में मैंने कुछ लघु कहानियां लिखीं, कुछ कविताएं लिखीं और उन्हें फेसबुक पर डालने लगा. फिर एक कवि मित्र ने कुछ पत्र-पत्रिकाओं के ईमेल भेजे. उन्हें अपना लिखा भेजने लगा, तो कई समाचार पत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में छपने भी लगा. फेसबुक पर कुछ साहित्यिक समूहों का सदस्य बना, जिनके माध्यम से आपसे भी परिचय हुआ.”
जितेंद्र भाई जिस उच्च कोटि की रचनाएं करते हैं, उसके लिए अनेक गुण या कि कहिए विशेषताओं की दरकार होती है.
सबसे पहले तो काव्य कला की समझ हो. जितेंद्र भाई इस कला के प्रोफेसर हैं.
किसी भी रचना के लिए जिन शब्दों की दरकार हो, उनका पूरा ज्ञान होना अवश्यम्भावी है. जितेंद्र भाई शब्दों के खिलाड़ी भी हैं और जादूगर भी! एक शब्द को भी इधर-से-उधर करना रचना के प्रभाव को प्रभावित करता है. शब्दों में त्रुटियां न हों, इसका वे विशेष ध्यान रखते हैं.
अनेक विषयों के गहरे ज्ञान की होना भी विशेष गुण है. इस कड़ी के दूसरे भाग में हमने आपको जितेंद्र भाई के विज्ञान की समझ का जिक्र किया था. जितेंद्र भाई ने ब्लैक होल का सटीक एवं सार्थक प्रयोग किया है. ब्लैक होल को हम वैसे समझ पाएं या नहीं, जितेंद्र भाई का मुक्तक आसानी से समझा देता है. एक बार फिर देखिए और समझिए-
“तुम्हें पुकारती मेरी हसरतें
समाए जा रही हैं
तुम्हारे सब्र के ब्लैक होल में,
वापस जहां से आना
किसी प्रतिक्रिया का
मुमकिन ही नहीं।”
जितेन्द्र ‘कबीर’
इस बार भी अंतिम पोस्टर में भी जितेंद्र भाई ने विज्ञान संबंधी कितनी गहरी बात कह दी है! हम सब जानते हैं, कि एक ही समय में एक देश में चंद्रमा का कुछ ही हिस्सा दिखाई देता है. जितेंद्र भाई ने बड़ी खूबसूरती से इस चित्रण को मुक्तक में जीवंत कर दिया है.
अंत में चलते-चलते हम जितेंद्र भाई की सफलता का एक गुर बताते चलते हैं. जिस दिन जितेंद्र भाई का ब्लॉग आना होता है, हम जितेंद्र भाई से बिना पोस्टर के कुछ मुक्तक भेजने को कहते हैं, वे तुरंत भेज देते हैं.
उनका ब्लॉग पब्लिश होते ही हम उन्हें 11 नए पोस्टर्स भेजने को लिखते हैं. इस बार भी ऐसा हुआ, दो मिनट में ही जितेंद्र भाई ने 11 नए पोस्टर्स भेज दिए, जाहिर है कि उन्होंने पहले ही तैयार करके रखे होंगे. यही है सफलता के लिए सटीक एवं सार्थक संयोजन. जितेंद्र भाई की सफलता और उज्ज्वल भविष्य के लिए अनंत शुभकामनाएं.
‘कुछ तो कहेंगे लोग, सबसे बड़ा रोग!’ पर जितेंद्र भाई का अनूठा अंदाज!
“किसी समय मैं अपने मत को लेकर बड़ी बहसबाजी किया करता था लेकिन अब मैं खुद से असहमत लोगों को नजर अंदाज करके अपने काम पर ध्यान देने की कोशिश करता हूं।”
जितेंद्र भाई, यही बात-सही बात. बहसबाजी खुद से करना अच्छा है, दूसरों से नहीं और खुद से बहसबाजी किए बिना कोई रचना सृजित होती ही नहीं!