प्रेम की पाती
प्रेम की पाती
दूर कहीँ से साथी को
लिखती विरहणी पाती।
वर्षों की प्रतीक्षा,
प्रेम से वंचित।
तड़पन की पराकाष्ठा से,
पत्र हैं संचित।।
परिणय सूत्र बन्धन से,
पति का देवलोकगमन।
क्योँ भूलूँ किंचित पलो के,
पति प्रेम का सुंदर रमण।।
सुना हैं पति प्रेम ही भक्ति,
बनूँगी मीरा जैसी।
न परवाह वैधव्य की,,
यह झुठली दुनिया कैसी।।
यह पाती प्रेम की,
पति-वियोग का सहारा मिले।
अंकुरित करे ये पाती,,
वियोग प्रेम में अदभुत खिले।।
बच्चों के साथ ये लिखी,
भरे प्रेम-पत्र ही मेरे साथी।
दूर घर से साथी को
लिखती विरहणी पाती।।
मनु प्रताप सिंह चींचडौली