एक व्यंग्य लघुकथा
हेलो! जी मैं “अलाने” शहर से तूफ़ान सिंह ‘झंझावात’ बोल रहा हूँ। क्या मैं “फलाने” शहर के कुपित कुमार ‘अग्नि’ जी से बात कर रहा हूँ?
जी हाँ, मैं अग्नि ही बोल रहा हूँ। फ़रमाइए मैं क्या सेवा कर सकता हूँ आपकी?
अग्नि जी, मुझे पता चला है कि आप अगले महीने अपने शहर में एक वीर रस के कवि-सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं। मैं भी वीर रस का कवि हूँ। आपकी इनायत हो जाती तो मैं भी इसमें सम्मिलित हो जाता। आप चिंता न करें, आने-जाने और ठहरने की व्यवस्था मैं ख़ुद कर लूँगा।
झंझावात जी, कृपया अपना प्रोफ़ाइल थोड़ा बताने का कष्ट करें। आप राष्ट्रीय कवि हैं या अंतर्राष्ट्रीय। डाक्टर वग़ैरह लिखते हैं क्या, शोध वाले न हों तो मानद उपाधि वाले ही हों। चिकित्सा वाले या फिर फीजियोथैरेपिस्ट ही हों। आप समझ सकते हैं कि नाम के साथ डाक्टर लगा हों तो अलग प्रभाव पड़ता है। या कोई और उपाधि आपको प्राप्त है? अब तक क्या-क्या सम्मान प्राप्त हुए हैं?
अग्नि जी, यह सब कुछ तो नहीं है मेरे पास पर मैं बुलंद आवाज़ में जब कविता पढ़ता हूँ तो बच्चे डरकर माँ की गोद में छिप जाते हैं। आस- पास के घरों की खिड़कियाँ हिलने लगती हैं। एक मील दूर तक के लोगों को कविता सुनाई देती है और युवकों की भुजाएँ फड़कने लगती हैं। प्रायः कवि-सम्मेलन में लोग अपनी आस्तीनें चढ़ा लेते हैं। बहुत ही प्रभावशाली कवि हूँ जनाब।
वो तो ठीक है झंझावात जी, पर हमारे अपने शहर में ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कवियों का पूरा जमघट मौजूद है। बहुत सारे डाक्टर नामधारी कवि भी हैं। चयन की बहुत ही मारामारी रहती है साहब। कोई मुक्तक का मसीहा है, कोई गीतों का बादशाह तो कोई ग़ज़लों का शहंशाह। अब तो गीतों के कई राजकुमार भी पैदा हो गए हैं। वीर रस के तो ऐसे-ऐसे धुरंधर हमारे पास हैं कि हमें बाहर झांकना ही नहीं पड़ता। उनकी कविता से युद्ध की रणभेरी बज उठती है। उनकी कविता से पाकिस्तान के हुक्मरान तक घबराते हैं साहब। कुछ कवि तो पंडाल में ही रण के दृश्य उपस्थित कर देने की गारंटी देते हैं। यह समझ लीजिए कि हर कवि-सम्मेलन में दस-पंद्रह कुर्सियाँ तो टूटती ही हैं। हम पर इतना दबाव होता है कि किसे बुलाएँ, किसे नहीं। आख़िर हमें इनके बीच ही रहना है। इनमें से कई तो हमारा आर्थिक सहयोग भी कर देते हैं। कईयों को तो हम खाली लिफ़ाफ़ा भी मानदेय के रूप में दे देते हैं।
अग्नि जी आप मुझे भी खाली लिफ़ाफ़ा दे दीजिएगा, बस मैं एक अवसर चाहता हूँ आपके शहर में।
देखिए मैं अकेला तो इसमें कुछ कर नहीं सकता। आप अपने क़ाव्य पाठ की एक वीडियो भेज दें। मैं आयोजन समिति से विचार करके ही बता सकूँगा, आप प्रतीक्षा कर लें।
झंझावात जी बीस दिन से प्रतीक्षा कर रहे हैं। वैसे कवि-सम्मेलन परसों है।
— बृज राज किशोर ‘राहगीर’