कविता

जीवन की धारा से हारा

जब तक जीवन की है यह साँस
हर कोई अपना रहता है  पास
टुट जाती है जब दिल की धड़कन
कब्रिस्तान से हो जाती है गठबन्धन

जीवन आशा निराशा की बँधी डोर
आशा की बस्ती का नहीं है कोई छोर
आशा पर टिकी है यह तन की साँस
पूरा जब ना होता टुट जाती है आश

टुट जाती है जब सॉसो की ये डोर
छुट जाती है रिश्ते बंधन की डोर
मोह माया की बन्धन है ये   सारा
जीवन का मन निराशा से है  हारा

जीवन की नैय्या जब भँवर में जा फँसता
मांझी कोई ना दूर तक मदद को दिखता
खुद से लड़ना होता है जीवन की  जंग
परेशां है सब हर कोई है जग में   तंग

जग में कोई खुशहाल ना है मिलता
सबका चेहरा बुझा बुझा सा है दिखता
मृगतृष्णा से भरा पूरा है यह संसार
कष्टों से जुझ रहा है सबका परिवार

फिर क्यूँ वैमनस्यता की होती है खेती
ईष्या द्वेष से मर गई ऑख की ज्योति
हर मानव जग में है अकेला बेगाना
बिना सुर ताल का है सब     गाना

उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088