भाई
बहनों को हैं भाते भाई।
हँसते और हँसाते भाई।।
सूरज – चंदा जैसे होते,
तम को स्वयं मिटाते भाई।
राखी के धागों में बँधकर,
हर उलझन सुलझाते भाई।
आँधी,पानी,आतप ग़म का,
सबसे सदा बचाते भाई।
प्रश्न सभी हल कर देते हैं,
मुश्किल दूर भगाते भाई।
हितचिंतक होते हैं लेकिन,
गाना कभी न गाते भाई।
शूल हटाते हैं राहों सें,
फूलों से मुस्काते भाई।
सुख-दुख में सँग हँसते रहते,
मित्र-सखा बन जाते भाई।
जब मायूस ‘अधर’ दिल होता,
ख़ुशियाँ भर-भर लाते भाई।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’