व्यंग्य कथा – नेतागिरी का पंचनामा
शहर से बाहर, पक्की सड़क के किनारे पीपल पेड़ के सामने, एक अधपक्का ब्लीडिंग के बाहर एक बड़ी सी होल्डिंग लगी हुई थी। जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था” नेता बनने का हुनर सीखें!”
मोदी जी भी अपने भाषणों में अक्सर कहा करते है” पकौड़ा तलना सीखें। पंचर बनाना सीखें। आंचार बनाना सीखें, फटीचर बनना सीखें। मतलब कि कुछ भी बनना-बनाना सीखें! पंचर बनाना-पकौडा तलना वैसा ही एक हुनर है जैसे झूठ बोल और जूमले गढ़कर सता हथिया लेना! हुनर के बिना आदमी का जीवन हुंडार सा हो जाता है …!”
सड़क किनारे के उस मकान के बाहर खड़ा मैं कुछ देर के लिए हुंडार की तरह ही सोचता रहा था। नेता बनने की बात है तो उसका फीस -फास भी बड़ा ही होगा। मै इसी सोच में पड़ा था कि तभी मेरी नजर पुनः उसी होल्डिंग पर जा टिकी!
” प्रवेश शुल्क -” पांच हजार इक्कावन रूपए ” उस पर लिखा हुआ था।
मैं अंदर जाने की सोच ही रहा था कि बढ़ते कदम रूक सा गये।। फिर भी दरवाजे तक चला ही गया। दरवाजा खुला था। उस पर एक पर्दा झूल रहा था। उस पर ऊं लिखा हुआ था। दरवाजे के बगल में एक खिड़की थी। उसके दोनों पल्ले खुले हुए थे। मैंने अपनी गर्दन थोड़ी लंबी की-ऊंट की माफिक! फिर अंदर झांका। प्लास्टिक की आठ दस कुर्सियां एक कतार से लगी हुई थीं। सभी के रंग लाल थे। एक दम बकरे की कलेजी जैसा। केवड़े की गंध से कमरा महक रहा था। क्रम बद्ध तरीके से चार लोग बैठे हुए थे। तभी कमरे में गेरूआ वस्त्र धारण किए एक अधेड़ ने प्रवेश किया। उम्र और चूल दाढ़ी से किसी बड़े आश्रम के फेकू लग रहे थे। उठ कर सभी ने उनका स्वागत किया। सीधे वो अपनी आसन पर विराजमान हुए तो बाकी भी बैठ गये थे।
पता चला। गेरूआ धारी का नाम स्वामी काली दास है। बरसों जेल काटकर आया है। तब से “नेता बनने का हुनर सीखें ” नाम का आश्रम खोल रखा है उसने।
आसन ग्रहण करते ही काली दास ने क्लास शुरू किया। पहले से पूछा- ” क्या नाम है ?”
” कमल दास!”
” काम क्या करते हो ?”
” ब्लॉक का बीडियो हूं। ”
” अच्छा माल बनाया होगा? और क्या करते हो ?”
” लेखक भी हूं। कहानी कविताएं लिखता हूं!”
” यह सब कहां बिकता है ? सरस सलिल में लिखते हो ?
” उसमें कभी लिखा नहीं है!”
” उसमें जल्द लिखना शुरू कर दो। उसी में लिख कर आज देश में कितने बड़े बड़े लेखक-संपादक बन गए हैं। तुम भी लिखना शुरू कर दो। तुम्हारा नेता बनने का रास्ता वहीं से खुलेगा।
” तुम क्या करते हो नौजवान ?” स्वामी ने दूसरे से पूछा था
” कॉलेज स्टूडेंट हूं!”
” कॉलेज चुनाव कभी जीता है ?”
” अभी तक तो नहीं स्वामी जी!”
” मार पीट के दोष पर कभी कॉलेज में दंडित हुए हो ?”
” नहीं स्वामी जी…!”
” गांजा चरस कोकिन पीते हो ?”
” हां यह सब पीता हूं ..!”
” इन नशों में शामिल अब तक कितनी लड़कियों का बलात्कार किया है तूमने ?”
” चार का…!”
” और पिटे कितनी बार…?”
” तीन बार..चौथी में भाग गया था।” लड़के ने बताया
” यहीं तुम मार खा गया! तुमको भागना नहीं चाहिए था, बल्कि पलट कर पीटना शुरू कर देना चाहिए था। डरने वाले को दुनिया डराती है, डरपोक मानती है लेकिन डराने वाले- मर्डर करने वाले को दुनिया सलाम करती है। देखो आज अहिंसा वादी या तो आश्रमों में आसन लगाए बैठे हैं या फिर वजूद के लिए धरना प्रदर्शन कर रहे हैं! दलाई लामाओं का जमाना नहीं रहा। बुद्ध के उपदेशों को लोग बोतलों में भर कर पी गये। देखो, अफगानिस्तान में तालिबान आ गया। देश में भगवा धारी आ गये, आज पुरी -दुनिया में ऐसे ही लोग शासन कर रहे है..!”
” आप क्या करते है..?” काली दास ने तीसरे से पूछा
” डॉक्टर हूं! आंखों का डॉक्टर!” उसने कहा था।
” बहुत खूब! मोबाइल ने सबको आंखों का रोगी बना दिया है। कमाई तो इसमें भरपूर है! फिर नेता बनने की लालच क्यों ?”
” जन धन सेवा करना चाहता हूं स्वामी .जी!”
” पत्नी है..?”
” हां.. है….!”
” सुंदर है!”
” बहुत सुंदर है!”
” नेताईन बनने का योग उसका है! आपका नहीं। आप डॉक्टरी कीजिए और पत्नी को किसी सांसद – मंत्री के साथ अटैच करवा दो। पार्टी टिकट वो कहीं से भी ले लेगी। हार भी जायेगी तो कोई फ़िक्र नहीं। संसदीय चुनाव में हारी हुई महिलाएं ही केबिनेट मंत्री मंत्री बनने की योग्यता रखती है..!”
” और आप क्या करते है भाई मोटेलाल!” स्वामी काली दास ने उठंग कर बैठे आखरी ब्यक्ति से पूछा था
” स्वामी जी, मेरा नाम मोटेलाल नहीं छोटेलाल है। मैं डिलर हूं। सरकारी अन्नाजो को ले जाकर गांव में लोगों के बीच वितरण करता हूं।”
” सरकारी अन्नाज गोदाम वालों के साथ सांठ-गांठ कर अभी तक कितने बोरी चावल-गेहूं गायब किए, उसका हिसाब है तुम्हारे पास…?”
” जी स्वामी जी…!”
” पहले जनता की मूड का पता करो। वे तुम्हारे बारे में क्या राय रखते हैं। कहीं ऐसा न हो नेता बनने के चक्कर में पब्लिक तुम्हें ही दौड़ाना शुरू कर दें!””
उसी क्षण! उसी पल में! लगा कमरे में तुफान घुस आया हो –
” स्वामी जी..स्वामी जी…!” कहता एक लम्बा चौड़ा गबरू सा जवान कमरे में आ घुसा था। खून से सने उसके दोनों हाथ! बदन पर लगे खून के दाग-धब्बे देख! डर के मारे सभी उठ खड़े हो गए। पर स्वामी काली दास मंद मंद मुस्कुराते बैठे रहे!
” शांत हो जाओ वत्स! शांत हो जाओ!” स्वामी काली दास ने आगंतुक से कहा था- ” तुम्हारा यह रूप बता रहा है कि जरूर कोई तगड़ा विरोधी रहा होगा। जिसे तुम ठिकाने लगा कर आया है। ”
” आप तो सबकुछ जानते है स्वामी जी! बरसों से जमीन को लेकर झगड़ा चल रहा था, न रहा बांस न बजेगी अब बांसुरी! अब आगे क्या करना है वो मुझे बतायें …!”
” अपने समर्थकों-चाहने वालों को यहीं बुला लो। कुछ मालाएं भी मंगवा लो…..!”
ऐसा ही हुआ। दस मिनट में ही तीस चालीस की संख्या में आदमी पहुंच गए आश्रम में।
” जाओ, जुलूस के शक्ल में जाकर थाने में सरेंडर कर दो। तुम्हारे भाग्य रेखा में, लोकसभा जाने का रास्ता वहीं से खुलेगा.गृह मंत्री का योग है.!”
आंगतुक के गले में पहली माला डालते स्वामी काली दास ने कहा था।
” देश का भावी नेता-जबरलाल! जिंदाबाद..! जिंदाबाद! ”
— श्यामल बिहारी महतो