घुंघट एक अजीब प्रथा है, सुनयनों कों बांध दिया है।
देख सके न नैन उठा के, लज्जापन से साध दिया है।
सुंदर रूप की राशी को, घटा ने ढक चांद लिया है।
खिली कली है गुलाब की,मधुसूदन ने ढांप लिया है।
गजगामनी पग भरती आए, घुंघट में मुखड़ा छुपाए।
लाज की मारी छैल काया,इत उत देख नयन शर्माए।
साजन की मनोहारी लोचन,पास आए हिया घबराए।
हर्षित पुष्पित पुलकित पग,सकुचाते गोरी जब आए।
भीनी भीनी खुश्बू बिखेरे,घुंघट के पट लटक सजाए।
गोरी इठलाती बलखाती, जाती घुंघट यूँ लटकाए।
बैठे दर पे नयन के प्यासे, देखें घुंघट कब हट जाए।
सावन को ज्यों धरती तरसे,त्यों नयन जीया तरसाए।
घुंघट में खुशीयां सिमेटे, गोरी के सब लाज छुपे हैं।
पिया मिलन की आई बेला, दिल में कई राज छुपे हैं।
खुल के होंगी मन की बातें,कई मन सुर साज छुपे हैं।
कैसी होगी प्रीत पिया की, मुहब्बत के ताज छुपे हैं।
खोलेंगे पिया घुंघट मेरा, इंतजार को आज छुपे हैं।
मेरे नयन चिड़िया जैसे, उन के नयन में बाज छुपे हैं।
घुंघट की मर्यादा भीतर,सन्याल नखरे नाज छुपे हैं।
घुंघट गोरी का इक गहना, इसमें रस्में रिवाज छुपे हैं।
— शिव सन्याल