कविता

घुंघट एक अजीब प्रथा है

घुंघट एक अजीब प्रथा है, सुनयनों कों बांध दिया है।
देख सके न नैन उठा के, लज्जापन से साध दिया है।
सुंदर  रूप  की राशी को, घटा ने ढक  चांद लिया है।
खिली  कली है गुलाब की,मधुसूदन ने ढांप लिया है।
गजगामनी  पग भरती आए, घुंघट में मुखड़ा छुपाए।
लाज की मारी छैल काया,इत उत देख नयन शर्माए।
साजन की मनोहारी लोचन,पास आए हिया घबराए।
हर्षित पुष्पित पुलकित पग,सकुचाते गोरी जब आए।
भीनी भीनी खुश्बू बिखेरे,घुंघट के पट लटक सजाए।
गोरी  इठलाती  बलखाती, जाती  घुंघट यूँ  लटकाए।
बैठे दर पे नयन के प्यासे, देखें  घुंघट कब  हट जाए।
सावन को ज्यों धरती तरसे,त्यों नयन जीया तरसाए।
घुंघट  में  खुशीयां  सिमेटे, गोरी के सब लाज छुपे हैं।
पिया मिलन की आई बेला, दिल में कई राज छुपे हैं।
खुल के होंगी मन की बातें,कई मन सुर साज छुपे हैं।
कैसी होगी  प्रीत पिया की, मुहब्बत के ताज  छुपे हैं।
खोलेंगे  पिया  घुंघट मेरा, इंतजार को  आज  छुपे हैं।
मेरे नयन चिड़िया जैसे, उन के नयन में  बाज छुपे हैं।
घुंघट की मर्यादा  भीतर,सन्याल नखरे  नाज छुपे  हैं।
घुंघट गोरी का इक गहना, इसमें रस्में रिवाज छुपे  हैं।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995