गीतिका/ग़ज़ल

मुस्कुराना सीखो!

आंख है भरी भरी और हम मुस्कुराने की बात करते हैं,
हमने कांटों से घिरे मुस्कुराते हुए गुलाब से यह अदा सीखी है,
हर तरफ़ धुंआ-धुंआ और हम दिल जलाने की बात करते हैं,
हमने रात भर मुस्कुराकर जलती हुई शमा से यह अदा सीखी है,
लोग तो कहेंगे- “तुम इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो!”
हमने तो “दुःख में पुलकित हो तो जानें” कविता भी लिखी है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244