कविता

मेरा गाँव

खेत खलिहान नदी मैदान
सबकी है अपनी पहचान
अपनों में अपनों को पाया
हर दिल में जहॉ प्यार समाया

ना खरदुषण ना प्रदुषण
अन्न भंड़ार हर्षित करता मन
आँगन में तुलसी का है वास
पीपल में देवी देवता का निवास

पड़ोसी सुख दुःख में काम आये
जड़ी बूटी में आर्युवेद समाये
बरगद सुनाती है युगों की कहानी
एक था राजा और एक थी  रानी

बुढ़ी अम्मा हर जन की है माता
दोस्त मुसीबत में साथ निभाता
एक दुजै के सब है यहाँ साथी
जैसे दीपक के  संग दिखे बाती

गाँव जवार की अपनी है शान
हर दर पे हर जन की है मान
बड़े बुर्जुग सबके अभिभावक
बच्चा बच्चा है तेज धावक

सोना उगले जहाँ की मिट्टी
कसरत से मजबूत है हड्डी
होली दीवाली में पके पकवान
संग संग मनाये हिन्दु मुसलमान

पत्थर भी देवों का प्रतीक
सबका होता है यहाँ मीत
सच्चा है यहाँ की पावन प्रीत
शाम में मिलजुल गाये जहाँ गीत

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088