वसंत का आगमन
रामेश्वर और नीतू की शादी उनके लिए खुशियों की सौगातें लेकर आई थी. अभी हनीमून की तैयारी ही चल रही थी, कि रामेश्वर की ऑस्ट्रेलिया में पोस्टिंग की खबर आ गई.
जीत का सेहरा नीतू के सिर बंधा- “लड़की का पैर पड़ते ही पौं बारह हो गए!” सभी ने प्रशंसा के गीत गाए.
ऑस्ट्रेलिया में निवास, फिर परिवार बढ़ने की आस! डॉक्टरी नियमानुसार पांचवें महीने में लिंग परीक्षण टेस्ट हुआ और उन्हें बता दिया गया कि बेटा होगा, उसी हिसाब से तैयारी करें. बेटी के लिए भी मन से तैयार थे, बहरहाल सब ठीक होने से खुशियों को पंख लग गए थे.
दो साल बाद फिर वैसी ही खुशखबरी! राम-लखन-सी रमन और अमन की जोड़ी!
नीतू के सेहरे के मोती चमकते जा रहे थे.
पर यह क्या, सहसा मोतियों की चमक कुंद पड़ने लगी!
रमन की गुड्डी आसमान में थी, अमन की डोर डोलने लगी थी.
मां से बेतहाशा प्यार, पिता के लिए बेरुखी! रमन भी तरस रहा था.
स्कूल में भी लड़कियों से दोस्ती, लड़कों की ओर से बेमुख!
“कहीं गे तो नहीं!” अमन की बेचैनी से माता-पिता की चिंता मुखर थी.
“बेटा, यहां स्कूल-ऑफिस-व्यवसाय में लिंग के लिए कोई भी नहीं पूछता, चिंता मत कर!”
इतने से ही छूट जाए, तो चिंता ही क्या?
थेरेपिस्ट ने पहले माता-पिता की थेरेपी की, “आप लोग ही निराश हैं, तो इसकी थेरेपी कैसे होगी! आशा के दीप जलाइए. घुप्प अंधेरा भी क्या सूरज को रोक पाया है!” थेरेपिस्ट ने माहौल बनाने को बिसात बिछाई.
“छोटी शुरुआत से प्रारंभ करना होगा.” थेरेपिस्ट पहला मोहरा चलाने को प्रस्तुत थी.
“छोटी मछली को छोटे बर्तन में रखा जाता है, धीरे-धीरे बढ़ाते हुए बड़ी मछली को तालाब आदि पानी के विशाल स्त्रोत में रखा जाता है.” समस्या से निपटने का उसका अपना तरीका था.
अमन का भाव-स्त्रोत विशाल होता गया.
उसकी नजरों का केंद्र बिंदु परिवर्तित होकर विस्तृत होता जा रहा था.
“I love you papa!”
14 वर्षों से रामेश्वर को अमन के इसी शब्द-गुच्छ की ही तो प्रतीक्षा थी! एक बार फिर 14 वर्षों बाद राम का वनवास पूरा हुआ था!
प्यार के शब्द-सुमन खिल उठे थे! वसंत का आगमन हो चुका था.