दिन – रात का चक्र निरंतर चलता।
मौसम किस तरह से रंग बदलता।
समेटे प्रकृति एक तिलिस्म अपने में ,
सूरज निकलता है ,चांद है ढलता।
शरद का चंद्रमा बिखेरता है चांदनीं।
सितारों से टका आंचल लगे है बांधनीं।
शुभ्र, धवल नभ धरा को बाहों में भरता,
हवाएं भी छेड़े जा रही हैं कोई रागिनी।
नदिया का जल भी रजत सा संवरता।
सूरज निकलता है , चांद है ढलता ।
शीत ऋतु कोहरे की चादर ओढ़ जाती ।
फूलों पर सुंदर तितलियाँ झूम इठलातीं।
पेड़ लता से धूप छन – छन कर झांकतीं ,
पंछियों की चहक संग कोयल गीत गाती ।
बर्फ की चादर में पारा कैसे पिघलता ।
सूरज निकलता है ,चांद है ढलता ।
— डॉ. अमृता शुक्ला