स्पीड ब्रेकर
“पापा जी से यह न हुआ कि एक ढंग का घर बनवा देते। पिंजरे सा घर है। अब सोनू को पढ़ने के लिए भी कमरे की ज़रुरत है। बताओ भला ! क्या हम अब बैठक में शिफ्ट हो जाएं?” आंखें नचा कर मोहिनी अपने पति मोहन और सास को सुना रही थी।
“मां ! तुम तो पिता जी को थोड़ा बड़ा प्लॉट लेने की सलाह दे सकती थी। उस समय रेट भी तो कितने कम थे।” , मोहिनी को समझाने की बजाए, मोहन भी अपनी मां को दोषी करार दे रहा था।
पर आज गलती से बहू बेटे के कहे गए “श्लोक” बाबू जी के कानों में पड़ ही गए थे, “सही कहा तुम दोनों ने! मैं खुद ही तुमसे कहने वाला था कि यह घर मैंने अपने बच्चों के लिए बनवाया था। स्पेस प्रॉब्लम की वजह से पिछले महीने अपनी बेटी को भी न बुला पाया था। अब अपने बच्चों की जिम्मेदारियाँ तुम लोग खुद संभालो और हां! अपने बच्चों के लिए पिंजरा मत बनवाना।”
“बाबू जी, मेरा मतलब वो नहीं था। आप तो ज़मीन की कीमतें जानते ही हैं, स्पेस (आकाश) छू रही हैं।” बहू – बेटा बाबू जी को समझाने और मनाने में लगे थे ।पर, बात के पक्के बाबू जी के बोल आज बहू बेटे की कैंची की तरह चलती जुबान को रोकने में स्पीड ब्रेकर का काम कर चुके थे।
अंजु गुप्ता ✍🏻